मूर्तिकार प्रदोष दासगुप्ता की कला यात्रा

Pradosh Dasgupta

Sculptures 1912-1991 transcending time

समकालीन भारतीय कला क्या है इसका कोई निश्चित चरित्र है या अपने स्वयं में परिपूर्ण है अन्य राष्ट्रों से अलग होकर इसने दुनिया में अपनी पहचान कैसे बनाएं इस प्रश्न का उत्तर जितना स्पष्ट है उससे अधिक आस्थान विश्वासों में स्वयं के चरित्र को देखना जो धार्मिक प्रथाओं और सदियों पुरानी रीति-रिवाजों परंपराओं तौर-तरीकों आदतो से बंधा हुआ है से बंधा हुआ है लोग दूसरे शब्दों में कहें दो लोगों के जीवन जीने का तरीका स्पष्ट रूप से दिखता है समकालीन दुनिया में कुछ इस तरह से फैला हुआ है जो लोगों के जीवन को काफी हद तक नियंत्रित या ढलता भी है इस को नापने का कोई निश्चित तरीका नहीं है निसंदेह गोली की स्थिति जलवायु और परिस्थितियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं या वनस्पति और जैविक जीवन से मिलता जुलता है चाहे दुनिया का कोई कोना हो बुनियादी अवधारणा है वैसी ही रहती हैं भारतीय मूर्तिकला के माध्यम से भारतीय मूर्तिकला के दृश्य अगर समकालीन भारतीय कला को देखा जाए तो इसमें नई सहेलियों के विकास के कई चरण आपको दिखाई पढ़ेंगे इनके संरक्षण के लिए समय-समय पर विभिन्न राजा और धार्मिक आदर्शों ने सहयोग प्रदान किया है 
मूर्तिकार प्रदोष दासगुप्ता

प्रदोष दास गुप्ता की शिक्षा

प्रदोष दासगुप्ता का जन्म 1912 ईस्वी में ढाका मैं हुआ था जो अब वर्तमान में बांग्लादेश में पड़ता है pradosh Das Gupta ने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात कला में विशेष शिक्षा के लिए गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट चेन्नई में गए जहां पर देवी प्रसाद राय चौधरी ने इन्हें मूर्तिकला की विधिवत शिक्षा दीक्षा दी इसके पश्चात लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट में भी अध्ययन किया तत्पश्चात मूर्तिकला में विशेष शिक्षा के लिए रॉयल अकैडमी आफ आर्ट लंदन, एल सी सी सेंट्रल स्कूल लंदन तथा Ecole de grand chaumier पेरिस में भी शिक्षा प्राप्त की

प्रदोष दासगुप्ता की कला यात्रा

प्रदोष दासगुप्ता ने मूर्ति कला में विशेष अध्ययन करके भारत लौटे और 1940 में कोलकाता में अपना स्टूडियो बनाया यहीं पर समान विचारधारा वाले कलाकारों रथीन मित्रा निरोध मजूमदार परितोष सेन हेमंत मिश्रा और गोपाल घोष के साथ मिलकर ग्रुप 1943 की स्थापना की इस ग्रुप के कलाकारों ने बंगाल में पड़े अकाल को अपने सृजन में प्रमुखता के साथ जगह दी इस ग्रुप का प्रमुख उद्देश्य कला को कला संस्थानों में चल रही सहेलियों से मुक्त कराना उनमें सौंदर्य की नई अवधारणा विकसित करना तथा कला की भाषा को और अधिक मार्मिक तथा संवाद पूर्ण बनाना था प्रदोष दासगुप्ता के मूर्ति शिल्प यह सब प्राप्त करने में सफल भी दिखाई पड़ते हैं इन पर औपनिवेशिक पश्चिमी वाद के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशियाई कलाम का भी प्रभाव दिखाई पड़ता है

प्रदोष दासगुप्ता ने अपने मुंह से अधिकतर कहां से प्लास्टर 13 कोटा में गधे हैं बंगाल में दुर्गेश एवं महायुद्ध से के द्रवित कर देने वाले दृश्यों से प्रभावित होकर यथार्थवादी मूड सिर्फ बनाए परंतु बाद में यथार्थवादी ता को छोड़कर अभिव्यंजना की तरह चले गए अब कलाकारों में मूर्खता की गठन दिखाई देने लगी पर उनमें पहले से अधिक परिपक्वता संतुलन और अनुपात दिखाई देता गया वह कैक्टस के समान तोड़ मरोड़ के बाद भी उनमें गगन अभिव्यक्ति और दर्शक को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता बढ़ती गई प्रदोष दासगुप्ता के मूर्ति सदैव अपनी कहानी स्वयं ही बताने लगते हैं जैसे ही उन पर दृष्टि पड़ती है वह ध्यान अपनी तरफ खींचने लगते हैं संवाद की नई चित्र भाषा प्रदोष दासगुप्ता नहीं गढ़ी है

प्रदोष दासगुप्ता ने हेनरी मूर की बैठी हुई खड़ी हुई लेटी हुई आकृतियों से प्रभावित दिखते हैं प्रदोष दासगुप्ता 1957 से 1970 के मध्य नेशनल गैलरी आफ मॉडर्न आर्ट के क्यूरेटर भी रहे इस समय इन्होंने गैलरी में एम एफ हुसैन सूजा तैयब मेहता रामकुमार ए रामचंद्रन की कलाकृतियों को गैलरी में प्रदर्शित किया
प्रदोष दासगुप्ता
प्रदोष दासगुप्ता 


प्रदोष दासगुप्ता के प्रमुख मूर्ति शिल्प

जय हिंद  कासा कंडोलेंस कासा पीकिंग लाइंस सीमेंट
फैमिली फैमिली ब्रोंज, unfolding of spring bronze, pounding corn bronze, the bride bronze,
There legged animal 1968 bronze, मदर अर्थ, मदर एंड चाइल्ड ब्रोंज, इग ब्राइड, जेनेसिस ब्रोंज 1971,

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