राजा रवि वर्मा ( 1848-1906 )

         चित्रकार राजा रवि वर्मा 

Kalakar Raja Ravi Varma


राजा रवि वर्मा

Kalakar Raja Ravi Varma का परिचय

     राजा रवि वर्मा का जन्म ऐसे वातावरण में हुआ जब भारतीय चित्रकला के सम्मुख स्वीकार्यता का संकट खड़ा था राजा रवि वर्मा ने जन सुलभ विषयों अथवा उन विषयों को अपना चित्रण आधार बनाया जो जन सामान्य में युगो युगो से समाएं हुए थे यही कारण था राजा रवि वर्मा के चित्र जनसाधारण के दिलों तक पहुंच सके इसीलिए राजा रवि वर्मा को जनसामान्य का चित्रकार भी कहा जाता है

महिला और हंस कृति टिकट पर - राजा रवि वर्मा
महिला और हंस कृति टिकट पर - राजा रवि वर्मा 

           रवि वर्मा का जन्म केरल राज्य के तिरुवंतपुरम से 24 मील दूर किलीमन्नुर में 1848 हुआ था चित्रकारों का राजकुमार तथा राजकुमारों में चित्रकार की संज्ञाओं से राजा रवि वर्मा को संबोधित किया जाता है भारतीय(तंजोर शैली) तथा पश्चिमी अकादमिक यथार्थवाद के बीच के सेतु स्वरूप थे राजा रवि वर्मा पहले प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने कैनवास पर आइल रंगों से कार्य प्रारंभ किया इन्होंने यूरोपी चित्रण पद्धति में सर्वश्रेष्ठ भारतीय चित्रकार अलागिरी नायडू तथा रामास्वामी नायडू से कला की शिक्षा प्राप्त की बाद में एक डच चित्रकार थियोडोर जॉनसन से तेल चित्रण तकनीक में शिक्षा प्राप्त कर महारत हासिल किया थियोडोर जॉनसन पोर्ट्रेट बनाने में अत्यधिक निपुण थे राजा रवि वर्मा शीघ्र ही अपने चित्रों के द्वारा राजघराने एवं जन सामान्य में चर्चित होने लगे चित्रों की मांग को पूरा करने के लिए 3 जर्मन  विशेषज्ञों की मदद से मुंबई में लिथोग्राफ प्रेस की स्थापना की इसके द्वारा राजा रवि वर्मा के चित्रों की प्रति कृतियां घर-घर तक पहुंच गई अतः इन्हें भारत में कैलेंडर कला का जन्मदाता भी माना जाता है


             राजा रवि वर्मा ने फारसी रंगमंच के प्रभाव से देवताओं की जो छवियां अपने चित्रों में बनाई वह भारतीय जन सामान्य में देवी देवताओं की मानक छवियां बन गई बाद में देवी देवताओं की यह आकृतियां व्यापक होकर दादासाहेब फालके से लेकर रामानंद की रामायण तथा आर चोपड़ा की महाभारत आदि में भी मानक छवियां बनी उन्होंने दैनिक जीवन का भी पर्याप्त चित्रण किया है साथ ही बड़ौदा मैसूर आज के राजघरानों के लिए व्यक्ति चित्रों का निर्माण किया है उन्होंने प्रयाह गरम रंगो लाल स्वर्णमई ताबाई तथा पीले रंगों का अत्यधिक प्रयोग किया है राजा रवि वर्मा के विषय पौराणिक थे

        मद्रास के गवर्नर ने 1873 में इनके अनेक चित्रों को खरीदा इसके पश्चात 1880 में पूना में चित्रों की एक प्रदर्शनी 1892 में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियाना में एवं शिकागो में चित्रों की प्रदर्शनी हुई उन्होंने मद्रास के गवर्नर का स्वर्ण पदक वियाना कला प्रदर्शनी का योग्यता प्रमाण पत्र गायकवाड स्वर्ण पदक अंग्रेज सरकार ने केसर ए हिंद पदक प्रदान किया किया

          आनंद कुमारस्वामी तथा परंपरागत चित्रकला के समर्थक विद्वानों एवं चित्रकारों ने राजा रवि वर्मा के चित्रों को नाटकीय कहकर आलोचना की है किंतु समालोचनात्मक दृष्टिकोण रखने वालों ने राजा रवि वर्मा के चित्रों को इस पत्नोन्मुख काल में यूरोपीय तकनीक के आधार पर उत्कृष्ट चित्रों की रचना अवश्य की है जिन्होंने जनसाधारण में कला की समझ को विकसित किया 

राजा रवि वर्मा चित्रण विषय


लक्ष्मी - राजा रवि वर्मा
लक्ष्मी - राजा रवि वर्मा 

        धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथ, व्यक्तिचित्र, केरल का जनजीवन तथा दृश्य चित्र आदि

राजा रवि वर्मा प्रसिद्ध चित्र

        पत्र लिखती हुई शकुंतला, वीणा बजाती स्त्री, नल दमयंती, शकुंतला वियोग, श्री राम द्वारा समुद्र का मान भंग ,रावण और जटायु, मराठी नैयर, कुलीन महिलाएं, महिला और दर्पण, हाथ में फल लिए हुए महाराष्ट्र की महिला ,Draupadi in the court, ए वुमन होल्डिंग ए फ्रूट, लेडी इन मुनलाइट, दक्षिण भारत के जिप्सी, मनिनी राधा, हंस और दमयंती

नोट 

 1.  1891में सेलेंध्री को बांबे आर्ट सोसाइटी मैं पुरस्कार मिला तेल रंग माध्यम की शिक्षा डच चित्रकार थियोडोर जानसन को देख कर प्राप्त की आरंभिक शिक्षा मदुरई के कलाकार अलाग्री नायडू व् तंजौर के चित्रकार रामास्वामी नायडू से ली 

2. 1894 ईसवी में बड़ोदरा के दीवान सर माधवराव के परामर्श पर मुंबई के निकट घाटकोपर में एक लिखो लिथोमुद्रण छापाखाना की स्थापना की

3. जया अप्पास्वामी ने ने राजा रवि वर्मा को विक्टोरियन शैली का कलाकार माना है 

4. मेनियर विलियम्स  ने अभिज्ञानशकुंतलम ग्रंथ के अंग्रेजी अनुवाद के मुख्य पृष्ठ पर शकुंतला की पेंटिंग छापी थी 
5. राजा रवि वर्मा के चित्रों का सबसे बड़ा संग्रह लक्ष्मी विलास भवन बड़ौदा में है
6. 1894 ईस्वी में शकुंतला का जन्म राजा रवि वर्मा की ऑलियोग्राफी प्रेस में मुद्रित प्रथम चित्र था तदुपरांत सरस्वती और महालक्ष्मी चित्र मुद्रित किए गए
7. 1901 में जर्मन तकनीशियन Schizer को अपनी लिथोग्राफी प्रेस बेच दी

 राजा रवि वर्मा को सम्मान

                             केसर ए हिंद, गायकवाड स्वर्ण पदक,ऑनर ऑफ़ बंगाल

        राजा रवि वर्मा ने उदयपुर के महाराणा तथा मैसूर के जगमोहन महल हेतु भी चित्रण कार्य किया इनकी तकनीकी यूरोपीय किंतु चित्रण विषय भारतीय थे कलर ऑफ फैशन इनके जीवन पर आधारित फिल्म है जिसका निर्देशन केतन मेहता ने किया यह रणजीत देसाई के उपन्यास पर आधारित है फिल्म में मुख्य भूमिका रणदीप हुडा तथा सुगन्धा का रोल नंदना सेन ने निभाया है 

राजा रवि वर्मा

Raja Ravi Varma se sambandhit mahatvpurn tathya

   कलाकार ए रामचंद्रन के प्रयत्नों से 1993 में राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में राजा रवि वर्मा के चित्रों की एक वृहद प्रदर्शनी आयोजित की इस अवसर पर उनके जीवन से संबंधित विवरणों को एक पुस्तक का प्रकाशन किया गया जो राजा रवि वर्मा न्यू प्रोस्पेक्टिव नाम से जानी गई

Raja Ravi Varma ka विवादों से रिश्ता

  राजा रवि वर्मा ने पौराणिक ग्रंथों पर आधारित रंभा और उर्वशी  जैसी अप्सराओं के नग्न चित्र बनाए जिनसे लोगों की भावनाएं आहत हुई तथा परिणाम स्वरूप इनकी प्रिंटिंग प्रेस भी जला दी गई इस घटना से दुखी होकर इन्होंने अपनी प्रिंटिंग प्रेस जर्मन तकनीशियन को भेज दी बेच दी

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