संयोजन के सिद्धांत

संयोजन के सिद्धांत principles of composition

      दो या दो से अधिक तत्वों मैं सामंजस्य स्थापित कर मधुर योजना का निर्माण करना ही संयोजन है जिसमें से एक तत्व की प्रधानता रहती है वैसे तो चित्रकला में रेखा रंग रूप तान पोत अंतराल आदि तत्व को संयोजित कर कलाकार सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करता है यह कलाकार के प्रयोग और अनुभव पर ही निर्भर करता है कि वह इन तत्वों का किस प्रकार प्रयोग करता है हो सकता है एक कलाकार में किसी तत्व की प्रधानता हो दूसरे कलाकार में किसी तत्व की प्रधानता हो कलाकार रेखा के प्रयोग से चित्रतल को कई भागों में विभक्त कर संयोजन का भावी स्वरूप देता है एक अध्ययनरत विद्यार्थी के लिए यह प्रयोग का विषय है वह जितना कला के तत्वों को चित्र फलक पर परस्पर रखकर अनुभव प्राप्त करेगा उसका संयोजन उतना ही सुखद और सरल होगा फिर भी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है कि उसका संयोजन दूसरों को सही ही लगेगा यह तो व्यक्तिगत अनुभव और सामर्थ्य की बात है

     आगे बढ़ने से पहले इतना स्पष्ट करना आवश्यक है संयोजन व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर करता है जो कलाकार की प्रयोग धर्मिता पर निर्भर करता है समय-समय पर कलाकारों ने अपने चित्रों में अलग-अलग प्रकार का स्पेस डिवीजन किया है जिससे तत्वों का मान बढ़ा और घटा है फिर भी प्रत्येक कलाकार अपनी कलाकृति में मुख्य विषय के साथ-साथ कुछ सहायक विषय कभी अंकित करता है उसका प्रमुख द उद्देश्य यही रहता है कि दर्शक की  प्रथम दृष्टि मुख्य आकृति पर होती हुई धीरे-धीरे चित्र के अन्य हिस्सों पर पहुंचे फिर भी एक समय या एक विचारधारा से प्रभावित होने वाले कलाकारों के कार्य में कुछ एक जैसी विशेषताएं दिखाई पड़ती हैं जो धीरे-धीरे उस विधा में कार्य करने वाले सभी चित्रकारों पर लागू हो जाती हैं जैसे पहाड़ी मुगल राजस्थानी कंपनी अजंता पाल जैन शैलियां और यूरोप यूनानी मिश्र रोकोको बारोक पुनरुत्थान कालीन यथार्थवाद आदि चित्र शैली इस नियम का श्रेष्ठ उदाहरण है
       प्रत्येक कलाकार चाहता है उसके चित्र में प्रयुक्त सभी तत्व एक दूसरे से सहयोग करते हुए संतुलन स्थापित करें या संतुलन चित्र को एक सूत्र में बांधता है जो उसके आकर्षण को भी बढ़ाता है जिससे चित्र में एकरूपता आती है यह संयोजन का प्राथमिक नियम है इसी के आधार पर संयोजन के सिद्धांत को निम्न भागों में बांटा जा सकता है 

1 सहयोग          unity
2 सामंजस्य       harmony
3 संतुलन          balance
4 प्रभाविता.      emphasis or dominance
5 प्रवाह             rhythm
6 प्रमाण            proportion

सहयोग unity

      सहयोग चित्र के विभिन्न तत्वों को एक सूत्र में बांधना ही सहयोग का काम है जा चित्र के विभिन्न तत्वों में एकरूपता समानता या एक प्रकार से सभी तत्वों को एकता सूत्र में बांधता है सहयोग का मुख्य कार्य कला के तत्वों में होने वाले बिखराव को रोकना है जिससे चित्र में मूलभूत एक की अनुभूति हो सके

सहयोग की परिभाषा definition of unity

      कला के तत्वों को एक सूत्र में बांधना ही सहयोग कहलाता है 

सहयोग का उद्देश्य Purpose of unity

        सहयोग का मुख्य उद्देश्य चित्र में आकर्षण के बिखराव को रोकना है दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की चित्र के सभी तत्वों को एक योजना में बांधना है चाहे वह चित्र यथार्थ हो या कल्पना का पुट लिए हुए हो कलाकार सदैव यह प्रयास करता है कि उसके चित्र में प्रयुक्त सभी तत्व एक दूसरे से मेल खाते हुए प्रतीत हो सहयोग द्वारा विषय की अभिव्यक्ति को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है चित्र में कई रूपों का सृजन किया जाता है फिर भी एक मुख्यरूप को अन्य रूप सहयोग प्रदान करते हुए प्रतीत होते हैं कलाकृति के पूर्ण होने पर सहयोग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है यह एक कला कृति की सफलता और असफलता का परिचायक भी हो सकता है दृश्य कलाओं में विषय वस्तु चाहे जो भी हो पर कलाकार द्वारा प्रयुक्त किए गए सभी तत्वों आपस में ऐसे गूंथे हो कि एक दूसरे का सहयोग करते हुए चित्र फलक पर प्रतीत हो तभी वह दर्शक तक अपने भावों को प्रेषित कर पाएगा इसीलिए दृश्य कला में सहयोग का होना आवश्यक है

सहयोग और दर्शक unity and audience 

           सहयोग चित्र में सौंदर्य को भी पल्लवित करता है जो दर्शक को अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम होता है उससे निकलने वाली कांति अपनी तरफ उसकी दृष्टि को आकर्षित कर धीरे धीरे चित्र का रसास्वादन करने के लिए प्रेरित करती है
सामान्य दर्शक जब प्रथम दृष्टि में किसी चित्र को देखता है तो उसका ध्यान सर्वप्रथम चित्र की मुख्य आकृति पर जाता है फिर वह धीरे-धीरे चित्र के अन्य विवरणों को जानता है अगर कलाकार ऐसा कर पाता है तो वह निश्चित ही अपने निर्धारित लक्ष्यों में सफल हो जाता है सहयोग के माध्यम से ही दर्शक कृति में निहित विवरणों को पहचान पाता है अन्यथा वह इन विवरणों में उलझ कर रह जाता है उदाहरण के तौर पर अंधेरे स्थान पर एक प्रकाश की किरण किसी वस्तु पर पड़ रही है जैसे जैसे वह प्रकाश बढ़ता जाएगा वैसे वैसे अन्य विवरणों पर हमारा ध्यान जाएगा कुछ इसी प्रकार से सहयोग दर्शक को चित्र में अंकित विवरणों को आत्मसात करने में मदद करता है

सहयोग और सापेक्षता

      आकार का एक गुण होते हुए भी सहयोग निरपेक्ष नहीं है आकार के विभिन्न भाग होते हैं और उन समस्त भागों का आपसी संबंध ही पूर्ण रूप ता का निर्धारण करता है चित्र में कलाकार विभिन्न आकार की वस्तुओं का अंकन करता है अगर वह एक ही आकार और समान भार वाली वस्तुओं का अंकन करेगा तो वह सहयोग रसहीनता का प्रतीक बन जाएगा रसहीनता को दूर करने के लिए कलाकार को उनके परिमाण में थोड़ा बहुत अंतर करना आवश्यक है जो भारती सड़क में स्पष्ट रूप से बताया गया इसका श्रेष्ठ उदाहरण अजंता की गुफा संख्या 17 में अंकित चित्र माता पुत्र है

चित्र में सहयोग निर्धारण

        चित्र में विभिन्न आकृतियां एक निर्धारित प्रारूप में जब प्रस्तुत की जाती हैं तो सहयोग का निर्माण होता है सामान्य तौर पर सहयोग से आशय एक रंग रूप की वस्तुओं के अंकन से लिया जाता है अगर कोई कलाकार इस प्रकार के आकारों का लगातार प्रयोग करता है तो चित्र रुचि विहीन हो जाएंगे दर्शक को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाएंगे धीरे-धीरे नीरसता घर कर जाएगी जो कलाकार के हित में नहीं होगी दर्शक सदैव नवीनता की तरफ भागता है और वह चुनौतियों को पसंद करता है इसीलिए भले ही आकृतियां आकार में एक जैसी हो पर उनका संयोजन ऐसा हो कि वह एक होते हुए भी देखने में एक जैसी प्रतीत ना हो जैसे समान आकार वाले आयतों को इस प्रकार संयोजित किया जाए कि वह समान होते हुए भी आपस में विरोध का भाव उत्पन्न करें इसी विरोधी स्वरूप में जब सहयोग उत्पन्न होता है तो वह दर्शक पर निर्णायक प्रभाव डालता है

सहयोग एवं विरोधाभास

     प्रथम दृष्टया दोनों एक दूसरे के विपरीत स्वभाव के दिखाई पड़ते हैं फिर भी एक अच्छे चित्र में दोनों का होना महत्वपूर्ण है जहां समान आकारों का संबंध सहयोग स्थापित करता है वहां विभिन्न आकारों का संबंध विरोधाभास उत्पन्न करेगा परंतु चित्रण में मुख्य भूमिका आकारों के आपसी संबंध की है आकारों का यही आपसी संबंध सहयोग कहलाता है कलाकार अपने चित्र में विविध प्रकार की रंग योजना तान पोत के साथ साथ भिन्न-भिन्न आकार के रूपों को भी प्रयोग में लाता है इन सभी के आपसी सहयोग से चित्र लावण्य पूर्ण बनता है तथा बिखराव से भी बच जाता है

सामंजस्य Harmony

   सामंजस्य चित्र तल पर एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करता है जिसमें कला के सारे तत्व मिलकर मुख्य आकृति को व्यवस्थित करते हैं चित्र में भाव जो भी हो पर सहायक रूप मुख्य आकृति के रूप को निखारने में जब सहायता प्रदान करते हैं जो का सामंजस्य का उचित उदाहरण है सामंजस्य में विरोधाभास का भी अपना महत्त्व है विरोधाभास विषय को और अधिक रुचिकर बनता है तथा दर्शक को चित्र के रसास्वादन में विशेष आनंद भी मिलता है पर कलाकार को इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि वह विरोधाभास के साथ ही चित्र में सामंजस्य होना बहुत आवश्यक है अन्यथा वह चित्र मात्र खंडों में व्यक्त विवरण  रह जाएगा

सामंजस्य की परिभाषा

    चित्रण के सभी तत्व यथा वरदान एवं रूपाली एक दूसरे के साथ मेल खाते हुए प्रतीत हो तथा चित्र में निरर्थक विकर्षण तत्व ना हो वह सामंजस्य का कहलाएगा

सहयोग एवं सामंजस्य में संबंध

    कलाकार का मुख्य ध्येय विषय की अभिव्यक्ति है वह इसके लिए चित्र को विभिन्न प्रकार के अलंकरण से सजाता भी है और चित्र को विविध प्रकार से विभाजित भी करता है पर कलाकार को सदैव ध्यान रखना चाहिए वाह चाहे चित्र का जैसा भी उपचार करें पर सारे तत्व में सहयोग होना आवश्यक है सामंजस्य विचित्र का विशेष गुण है जो चित्र के सारे तत्वों को एक सूत्र में बांधकर सौंदर्य को बढ़ाता है

रेखा सामंजस्य

रेखाओं को तीन मुख्य श्रेणियों में गिना जाता है
1 आवृत रेखाएं जो एक दूसरे का अनुकरण करती हैं वह आवृत रेखाएं कहलाती है
2 जो रेखा एक दूसरे का विरोध करती है
3 संधि रेखाएं जो एक दूसरे के प्रभाव को मृदु बनाती है
    कलाकार विभिन्न प्रकार की रेखाओं का प्रयोग करके चित्र में सामंजस्य उत्पन्न कर सकता है इसके साथ साथ वह इनके द्वारा हवाओं की भी अभिव्यक्ति करता है

रूप सामंजस्य

  रुप की अपनी शक्ति होती है जब कलाकार चित्रण तल
पर रूप अंकन प्रारंभ करता है तो चित्र भूमि दो भागों में विगत हो जाती है इन दोनों प्रकार के रूपों के सामंजस्य से ही एक आदर्श चित्र की रचना होती

पोत सामंजस्य

पोत धरातल की बनावट का गुण है जिसका अनुभव आंखों से भी किया जा सकता है जो कठोर मुलायम तथा  विविध प्रकार का भी हो सकता है इसका कलाकार उचित प्रयोग कर सामंजस्य का निर्माण करता है जो कलाकृति के सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं

विचार सामंजस्य

     कलाकार जिस विषय को लेकर चित्र बना रहा हो उसी से संबंधित अन्य सहायक सामग्री को जब चित्र में स्थान देता है तो वह विचार सामंजस्य प्रदर्शित करता है

वर्ण सामंजस्य

      चित्र तल पर रंगों का संयोजन इस प्रकार से होना चाहिए कि वह सुखद एवं आकर्षक लगे कलाकार इसके लिए विभिन्न विधियों का सहारा लेता है इस प्रकार की रंग योजना को अपनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि चित्र में एक जैसी रंगते होते हुए भी एक रसता ना आने पाए जो चित्र को रस हीनता के प्रभाव से बचाती है और रंग योजना ही यह निर्धारित करती है कि चित्र देखने में कितना आकर्षक प्रतीत होता है यहां तक कुछ विद्वानों ने रंग को चित्र का प्राण भी कहा है

संतुलन

   यह चित्रकला के सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो चित्र में अंकित आकारों को इस प्रकार से संयोजित करने पर विशेष रूप से ध्यान देता है जिससे चित्र फलक पर सभी आकृतियों का भार समुचित रूप से बिखरा हुआ प्रतीत हो फिर भी इस बिखराव में एकता के दर्शन होते हैं जो चित्र के मूल भाव को अपने अंदर सीमित रखता है

संतुलन की परिभाषा

संतुलन चित्रकला का वह सिद्धांत है जिसके अनुसार चित्रण के सभी तत्व इस प्रकार व्यवस्थित हो कि उनका भार समस्त चित्र तल पर समान रूप से विभाजित हो, भार को अनुचित रूप से केंद्रीयकृत होने तथा इस प्रकार के चित्र को असंतुलित होने से ही बचाना है इसका ध्येय है

प्रभाविता

    प्रभाविता का का मुख्य कार्य चित्र में संयोजित सभी आकारों को इस प्रकार से संबंधित करना है जो एक दूसरे का विरोध करते हुए भी एक दूसरे को सहयोग देती हुई प्रतीत हो

प्रभाविता की परिभाषा

    चित्र में प्रभाविता का तात्पर्य उस सिद्धांत से है जिसके द्वारा दृष्टि संयोजन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व पर सर्वप्रथम पड़ती है तथा उसके पश्चात महत्व के क्रमानुसार अन्य तत्वों पर तथा अन्य व्याख्या ऊपर जाती है

प्रभाविता के उद्देश्य

    प्रभाविता के तीन मुख्य उद्देश्य हैं
1 एक रसता समाप्त करना
2 विषय की अभिव्यक्ति के लिए आकृतियों को सहायता प्रदान करना
3 चित्र में अंकित सभी तक तत्वों में प्रभाविता
बोध कराते हुए सामंजस्य का भाव उत्पन्न करना है

प्रभाविता के तत्व

    प्रभाविता के लिए दो तत्व मुख्य रुप से उत्तरदाई हैं
1 विषय वस्तु की अनुरुपता
2 साधरणीकरण

1 टिप्पणियाँ

  1. कला संयोजन की बेहतरीन जानकारी मिली आपके इस ब्लॉग पोस्ट से।

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