Jain Chitra shaili

जैन शैली

बालगोपाल स्तुति 16 ई - जैन शैली



         जैन चित्रकला के प्रथम साक्ष्य साइतनवासल की गुफाओं से मिलते हैं हैं किंतु जैन धर्म से संबंधित अधिकांश चित्र मध्यकाल की पोथी चित्र शैलियों में प्राप्त करते हैं और नवीनतम चित्रों में सबसे उन्नत जैन शैली के चित्र ही माने जाते हैं भारतीय चित्रकला के इतिहास: कला कला जीवित रखने के लिए जैन शैली विशेष रूप से याद किया जाता है जैन शैली अजंता की महान शैली और लघु चित्र शैली को जोड़ने की एकमात्र कड़ी है
जैन चित्र शैली का नामकरण

  जैन शैली के नामकरण के संबंध में विद्वानों में काफी मतभेद रहा है इस शैली के चित्रों को जैन गुजरात पश्चिमी भारतीय शैली और अपभ्रंश शैली के नाम से भी पुकारा जाता है जो पाटन खंभात अहमदाबाद जैसलमेर बीकानेर जैसलमेर के जैन भंडारों में सुरक्षित हैं यहां से श्वेतांबर जैन हैं। संप्रदाय से संबंधित चित्र मिले हैं साथ ही दिगंबर ग्रंथों में शटखडगम ताडपत्री ग्रंथ है जो 1913 से 1920 के मध्य चित्रों हुआ दिगंबर संप्रदाय से संबंधित अन्य ग्रंथों में 1927 में नेमीनाथ मंदिर भीलडवाड़ा में लिखा गया जैन शैली से संबंधित अधिकांश चित्रण के कारण इस लघु चित्र शैली को जैन हैं। शैली का नाम दिया गया फिर भी राय कृष्णदास ने इस शैली के लिए अपभ्रंश शैली का नाम उन्नया है जिससे अधिकांश विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। 

जैन शाली
बालगोपाल स्तुति 16 ई - जैन शैली

जैन शैली के चित्रण स्थल

         जैन शैली के प्रमुख केंद्रों में माउंट आबू राजस्थान गिरनार गुजरात जौनपुर मांडू तथा उड़ीसा नेपाल म्यांमार आदि में पोथी चित्र बनाए गए

जैन शैली के चित्रों का विषय

         जैन शैली में जैन धर्म से संबंधित ग्रंथों पर आधारित पोथी चित्र बनाए गए हैं जैन धर्म के प्रमुख तीर्थंकरों को प्रमुखता के साथ चित्रित किया गया है अधिकांश पोथी चित्र छोटे आकार के बनाए गए हैं

जैन चित्र शैली से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

1 जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनेक स्थानों पर अनेक प्रतियां चित्रित हुई किंतु 1467 में जौनपुर वाली चित्रित कल्पसूत्र की प्रति सबसे प्रमुख मानी जाती है 
2 कल्पसूत्र पर आधारित कालकाचार्यकथा में सभी जैन तीर्थंकरों के चित्र प्राप्त होते हैं इस ग्रंथ में यश व लक्ष्मी देवी के चित्र भी है
3 अन्य जैन ग्रंथों में वीर सेन की धवल महादेवन की टीका है महावीर चरित्र, नेमिनाथ चरित्र, कथा रतन सागर अंगसूत्र संग्रहणी सूत्र आदि पोथी ग्रंथ प्रमुख है
4 बड़ौदा के जैन भंडार में 16 देवियों तथा 26 जून के चित्र संग्रहित हैं जिस का चित्रण जैन कलाकारों द्वारा किया गया है
5 जैन ग्रंथों में 24 जिन तीर्थंकरों सहित 63 शलाका पुरुषों का उल्लेख है, इनमें 24 तीर्थंकरों के अतिरिक्त, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव और प्रतिवसुदेव सम्मिलित हैं

 

जैन शाली
कामदेव  रतिरह्स्य - जैन शैली 

जैन चित्रशैली की विशेषताएं

1 चित्रों के विषयवस्तु मुख्य रूप से भगवान महावीर के जीवन तथा उनकी शिक्षाओं से संबंधित रही है
2 जैन धर्म से संबंधित ग्रंथों आधारित पोथियां बनाई गई हैं जिनमें तीर्थंकरों का चित्रण महत्वपूर्ण है
3 मुद्राएं अस्वाभाविक हैं जकड़न प्रतीत होती है जो अनुपात भी नहीं है कंधे अधिक चोड़ें बनाए गए हैं तथा उनके पेट पतले और क्षीण है
4 चित्र के संयोजन में 1 या 2 आकृतियों का ही अधिकतर प्रयोग किया गया है कलाकार ने भीड़ भाड़ वाले दृश्यों से बचने की कोशिश की है चित्रों में क्षितिज रेखा का अंकन ना के बराबर हुआ है
5 प्राथमिक रंग योजना को कलाकार ने अपनाया है गहरी पृष्ठभूमि पर छाया प्रकाश की सहायता से चित्रों को दर्शाने का प्रयास किया है चित्रों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने पतली कलम से रेखांकन किया गया हो

6 पुरुषों वेशभूषा में दुपट्टा धोती का अधिकतर प्रयोग हुआ है तथा स्त्रियों को कसी हुई अंगिया धोती पहने हुए चित्रित किया गया है जिसमें गुजराती पटोला के मोटे अलंकर छपे हैं

       जैन शैली में सभी विशेषताएं अपभ्रंश चित्रशैली वाली दिखाई पड़ती हैं इस प्रकार हम कह सकते हैं जैन चित्रशैली में लोककला की सादगी सामाजिक यथार्थ तत्परता व सीमित कल्पना शक्ति जैसी प्रवृत्तिया ताड़पत्रीय ग्रंथ चित्र तथा काष्ठ कला का प्रभाव वाली विशेषताएं इस शैली को महत्वपूर्ण बनाती है

      जैन शैली के चित्रों को समझने के के लिए हमें जैन धर्म के विषय में जानना आवश्यक है

महावीर स्वामी का जन्म और जीवन यात्रा

महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली के निकट कुंडग्राम बिहार राज्य में हुआ था इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञात्रक कुल के प्रधान थे इनके बचपन का नाम वर्धमान माता का नाम त्रिशला पत्नी का नाम यशोदा तथा पुत्री नाम प्रियदर्शनी था भगवान बुद्ध की भांति इन्होंने भी 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग कर दिया 42 वर्ष की अवस्था में ऋजुपालिका नदी के किनारे में साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ तब है जिन - विजेता, अहरत - पूज्य और बंधन इनका लाए 72 वर्ष की आयु में 468 शाहपुर में पावापुरी वर्तमान बिहार मैन की मृत्यु हुई महावीर जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर थे जैन धर्म की स्थापना ऋषभदेव ने की थी जो प्रथम तीर्थंकर माने जाते हैं

जैन शाली
भित्ति चित्र -मदनपुर

  भित्ति चित्र मदनपुर विषयवस्तु

    कालकाचार्य एक जैन मुनि थे उनकी साध्वी बहन का अपहरण उज्जैन के राजा ने कर लिया था अतः उन्होंने शक राजाओं की सहायता से अपनी बहन के अपमान का बदला लेने की योजना बनाई चित्र में कालका चार्य को शक राजा के साथ विचार विमर्श करते हुए दिखाया गया है

जैन धर्म की शिक्षाएं

  • हिंसा न करना
  • सदा सत्य बोलना
  • चोरी ना करना
  • संपत्ति ना रखना

जैन तीर्थंकर और उनके प्रतीक

    • ऋषभदेव - सांड
    • अजीतनाथ - हाथी
    • संभव तृतीय - घोड़ा
    • पार्श्वनाथ - स्वस्तिक
    • शांतिनाथ - हिरण
    • अमरनाथ - मीन 
    • नीमनाथ - नीलकमल 
    • अरिष्ठनेमी - शंख 
    • पार्श्व तेइसवें  - सर्प 
    • महावीर - सिंह

जैन धर्म की संगीतियां

प्रथम संगति,      
        
  तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व     पाटिलपुत्र            स्थूलभद्र

द्वितीय संगति,               

छठी शताब्दी ईस्वी       पल्लवी गुजरात          क्षमा श्रवण 

नोट 

     जैन धर्म के त्रिरत्न श्रमिक ज्ञान सम्यक दर्शन सम्यक आचरण और त्रिरत्न के अनुसार पांच महावरत ओम का पालन अनिवार्य बताया गया है अहिंसा सत्य वचन असक्ति ब्रह्मचर्य जैन धर्म ईश्वर को नहीं मानता है कि आत्मा में विश्वास रखता है और कर्मवाद और पुनर्जन्म में भी। विश्वास करते हैं इनका दर्शन सांख्य दर्शन से लिया गया है
   मैसूर के गंग वंश राज्य के मंत्री चामुंड के किराए से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10 वीं शताब्दी के मध्य में एक विशाल गोमतेश्वर बाहुबली की मूर्ति निर्मित की गई कलसूत्र की रचना भद्रबाहु ने जैन तीर्थ अंकों की जीवनी के आधार पर की।

Post a Comment

और नया पुराने