मानवीय संवेदना का बदलता स्वरुप

   संवेदना या भाव इन शब्दों से अक्सर हम आप रोज किसी न किसी रूप में रूबरू होते हैं पर कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं जिनको देखकर इनके मायने मात्र छलावा प्रतित होते है जरा सी कल्पना करिए और देखें मानव समाज के अलावा भला और कौन है जो इन शब्दों को गढ़ता हो और इनके अर्थों को समझता हो फिर भी मानव को छोड़कर सारे जीव जंतु यहां तक प्रकृति भी कहीं ना कहीं इन शब्दों के वास्तविक अर्थ को ग्रहण करते हुए अपने अपने हिस्से का कर्तव्य निर्वाहन कर रही हैं पर मानव की जहां पर बात आती है वह अपना रंग गिरगिट के सामान बदल लेता है
     मनुष्य इस धरा का सबसे बुद्धिमान प्राणी है अतः अपने बचाव के लिए कोई ना कोई उपाय अवश्य खोज लेगा इसीलिए भावों के भी कई रूप गिनाए गए उन्हीं में से एक है क्रूरता या वीभत्स केरल की यह घटना इस भाव का एक उदाहरण है एक भूख प्यास से व्याकुल हाथी केवल अपनी भूख को शांत करने के लिए इधर उधर भटक ही रहा था कि किसी ने उसे पटाखों से भरी खाद्य सामग्री खाने के लिए दे दी वह फट गए जिससे हाथी की दुखद मृत्यु हो गई मृत्यु से पहले घायल हाथी ने किसी मानव को कोई कष्ट नहीं पहुंचाया शायद ऐसे भाव पशु पक्षियों के अंदर ही हो सकते हैं जो किसी पर तभी प्रहार करते हैं जब उनको लगे कि उनके प्राण संकट में है अन्यथा वह अपना जीवन जियो और जीने दो के सिद्धांत पर बिताते हैं
    मानव का इतिहास बताता है जब-जब समाज में कोई अत्यंत दुखद घटना घटती है तभी हम संवेदना की बात करते हैं अन्यथा इन शब्दों का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है जैसे जैसे समय बिताता है वैसे वैसे हम पुनः अपनी पुरानी दिनचर्या की तरफ लौट जाते हैं क्योंकि हम सबसे बुद्धिमान हैं भूलना हमारी फितरत है हम मनुष्य को यह अधिकार प्राप्त है अपने कौतूहल के लिए किसी भी पशु पक्षी को आपस में लड़ाना अपनी स्वार्थ के लिए बलि देना एवं अन्य प्रकार के करतल के द्वारा असीम आनंद प्राप्त करना यह सब देखकर ईश्वर भी दुखी होता होगा और सोचता होगा कितने जतन से मनुष्य को बनाया उसे सुंदर  रंग रूप और बलबुद्धि से परिपूर्ण बनाया एक ऐसा हृदय दिया जो सभी के दुख दर्द को समझ सके पर उसके कर्मों को देखकर परमात्मा अपने सृजन को लेकर चिंतित अवश्य हुआ होगा और सोचता होगा काश हमने पशु पक्षियों को ही इस धरती पर राज करने के लिए चुनते कम से कम अगर वह एक दूसरे के प्रति ऐसे जघन्य अपराध करते तो यह कहकर स्वयं को दिलासा अवश्य दे सकता था कि चलो ये तो जानवर ही हैं
     मानव ईश्वर को प्रिय अवश्य परंतु वह संपूर्ण सृष्टि को का पालनहार है वह दृष्टि का संतुलन स्थापित अवश्य करता है ऐसा हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित है और इतिहास भी यही हमें बतलाता है अब यह हम सब मनुष्यों पर है कि अपने कर्तव्यों का सम्यक रूप से निर्वहन करेंगे या नहीं या फिर उस परमपिता परमात्मा के अंतिम हस्तक्षेप का इंतजार करेंगे

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