पाल चित्र शैली

          

 पाल शैली

Pal Shaili

        Pal Shaili आठवीं सती में प्रारंभ हुई बौद्ध धर्म के अनुसार गोपाल नाम के एक सेनानायक ने 730 ईसवी में एक राजवंश की स्थापना की जो पाल राजवंश के नाम से जाना गया इसके पश्चात इस राजवंश में क्रमशः धर्मपाल देवपाल नारायणपाल महिपाल जैसे महत्वपूर्ण शासक हुए और पाल काल में कला की भारी उन्नत हुई रामपाल पाल राजवंश का अंतिम शासक था इसको सामंत सेन ने परजित कर इस राज्य पर अधिकार कर लिया

       पाल शैली के चित्रों में अजंता शैली की विशेषताएं मिलती हैं या यूं कहें यह जनता शैली की एक विकृति शैली का ही रूप है यहां पर चित्र 22.25 × 2.25 इंच के ताड़पत्र पर बने हैं पोथी में चित्र आयताकार या वर्गाकार अंतराल में अंकित किए गए थे चित्रों का विषय महायान और ब्रजायन बौद्ध ग्रंथों की विषयवस्तु रही है पाल शैली के अधिकांश पोथियां बंगाल बिहार नेपाल आदि केंद्रों पर चित्र की गई ताल पत्रों के मध्य में बने चित्रों का विषय महायान के देवी-देवताओं से संबंधित रहा है जबकि समन्वय पत्रों के दोनों ओर के पदों पर अलेखन व जातक कथाओं का सुंदर चित्रण किया गया

       पाल कलाकारों को तांबे की मूर्तियां बनाने में भी महारत हासिल थी धर्मपाल देवपाल व महिपाल के काल में, इस कला शैली की विशेष उन्नति हुई इस शैली में अपभ्रंश शैली के चित्रों केलक्षण मुख्य रूप से प्रकट नहीं हुए इसका मुख्य विषय वस्तु बौद्ध शैली से संबंधित थी तथा पाल शैली को राज्य से संरक्षण प्राप्त हुआ

 पाल शैली से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

1 पाल शैली का मुख्य उद्देश्य बौद्ध ग्रंथों को प्रतिबिंबित ग्रंथों के रूप में विकसित करना था
2 पाल शैली में चित्र पोथियां लगभग में 24 है जिसमें अष्टसंघिका प्रज्ञापरमिता गंधिवुह करणदेवगुहा पंचशिखा बोधिचर्यवृत्त प्रमुख हैं।
3 चित्रों में महायान देवी भगवान की आकृतियां बनाई गई थीं वह एक समान दिखाई पड़ती हैं 
4 पाल शासकों के समय पट पेंटिंग भी प्रचलित था जो लोक कला के रूप में बंगाल क्षेत्र में आज भी जीवित या प्रचलित है यह पट चित्र लोक जीवन और हिंदू धार्मिक ग्रंथों के आधार पर चित्रित किए गए इस विधा के चित्रकारों में नीलमणि दास, बाल दास गोपाल दास आदि के नाम प्रमुख हैं 

 पाल की शैली विशेषताएं

1  अधिकांश मानव आकृतियों के चेहरे सवा चश्म हैं जिनमें आंखें बड़ी अधिक लंबी नासिका और हाथ पैर की मुद्रा में अकड़न है पालपोथी शैली के चित्रों को दृष्टांत चित्रों के रूप में अंकित किया गया है। 
2 चित्रों में वरीयता: लाल  सफेद और काले रंग का इस्तेमाल किया गया है सुनहरे और बैंगनी रंगों का प्रयोग नहीं किया गया है चित्रों की रेखाएं कठोर हैं किंतु अलंकारिकता का पर्याप्त समावेश है। 
3 पाल चित्रों की अधिकांश पोथियां एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल में सुरक्षित है 
4 हेलन रुबेंसो नेे पाल शैली को बिहार शैली के नाम से पुकारा है
5 धर्मपाल ने बिहार में बौद्ध अध्ययन केंद्र विक्रमशिला और सोमपुरा बिहार स्थापित किया 
6 इस शैली के चित्र बिहार और बंगाल में तेरहवीं शताब्दी में बनाने बंद हो गए लेकिन नेपाल में 16 वीं शताब्दी तक निर्जीव रूप में रही।  
7 पाल काल में ही नालंदा और ओदंतपुरी जैसे नव बौद्ध विहारों की स्थापना हुई

 नोट 

 लामा तारा नाथ ने पाल शैली को पूर्वी शैली या नाग शैली के नाम से संबोधित किया है

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