सिन्धु घाटी सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता की कला

सिंधु सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति अनेक ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों से पुरानी है किंतु कांस्य का प्रयोग इस सभ्यता को काल क्रमानुसार बाद में निर्धारित करता है इस संस्कृति का नाम हड़प्पा संस्कृत इसलिए पड़ा है क्योंकि सबसे पहले इसी स्थल की खोज की गई तथा 1921 में इसका उत्खनन आरंभ हुआ इस सभ्यता का विकास उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के किनारे तक और पश्चिम में बलूचिस्तान प्रांत से लेकर उत्तर प्रदेश तक था इस सभ्यता के विस्तृत आकार के आधार पर स्टुअर्ट पीगाट ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को इस विस्तृत राज्य की जुड़वा राजधानियां कहा है यह क्षेत्र डेल्टा आकार का है इसका क्षेत्रफल 1300000 वर्ग किलोमीटर है जो लगभग प्राचीन सभी समकालीन सभ्यताओं से बड़ा है सिंधु सभ्यता के निर्माता द्रविड़ थे

सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण

सिंधु सभ्यता का समय निर्धारण काफी विवादों से ग्रसित रहा है अनेक विद्वानों ने इसका समय निर्धारित करने का प्रयास किया है जो इस प्रकार है 
सर जन मार्शल के अनुसार 3250-2750bc
अर्नेस्ट मैक  2800-2500 bc
माधव स्वरूप वत्स  3500-2700bc

मार्टिल व्हीलर 2500-1500bc

        प्राप्त अवशेषों की C14 की गणना पर इस सभ्यता का 2500 - 1700BC ka समय निर्धारित हो चुका है जो सर्वाधिक मान्य है अब तक सभ्यता के लगभग 1500 स्थल खोजे जा चुके हैं जिसमें से मुख्य इस प्रकार हैं

हड़प्पा सभ्यता के विषय में सबसे पहले 1826 में चार्ल्स कार्लसन ने जानकारी दी कि किंतु 1878 में  विस्तृत लेख लिखा जिसके आधार पर माधव स्वरूप वत्स ने 1921 ई० में उत्खन कराया प्राचीन काल इससे हरयूपिया भी कहा जाता था इस स्थल से दो टीले मिले है। जिसमें जिसमें पूर्वी टीले को नगर टिला एवं पश्चिमी टीला को दुर्ग टीला कहा जाता है। यहाँ से छ छ की पक्तियों में बने एक अन्नागार (धन्यागार) के अवशेष मिले (15.23x6.09) है। और क्षेत्रफल लगभग 745 वर्ग मीटर है। इसके अतरिक्त कलात्मक अवशेषों में बर्तन पर बने मछुआरे का चित्र, शंख पर बना बैल का चित्र या स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा इसे ही मातृ देवी कहा गया पीतल का बना इक्का, तांबे के गलाने का सबसे बड़ा कारखाना आदि प्राप्त हुआ है सिंधु सभ्यता से मिली अभिलेख युक्त मोहरों में अधिकतर साक्ष्य यहीं से प्राप्त हुए

मूर्ति शिल्प

Male torso - लाल बलुआ पत्थर

मोहनजोदड़ो

सिंध प्रांत के लकराना क्षेत्र में सिंध नदी के दक्षिण किनारे पर मोहनजोदड़ो स्थल स्थित है इसे मृतकों का टीला या प्रेतों का टीला या नखलिस्तान भी कहा जाता था मोहनजोदड़ो में भी दो टील मिले हैं जिसमें पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहा जाता है क्योंकि परवर्ती काल में कुषाण शासकों ने यहां पर एक बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सर्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है यह 11.88x7.01x2.43 मीटर है सर जॉन मार्शल ने इस निर्माण को विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण कहा है मोहनजोदड़ो की सबसे विशाल इमारत  धन्यागार है  जो 45.71x15.23m माप की है अन्य प्रकार के कलात्मक एवं भवनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो इस प्रकार हैं

मूर्तिकला

Mother goddes - terracotta
The priest king - seated stone
The Dancing Gril - Bronge
बैंस और भेड़, कांस्य
कुबड़दार वृषभ , तांबा

मुहर 

पशुपति शिव

मोहनजोदड़ो के अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

भट्ठे के अवशेष, सूती कपड़ा, हाथी का कपाल खंड, गले हुए तांबे के ढेर, सीपी की पटरी

धौलावीर

यह स्थल कच्छ के रण में गुजरात में स्थित है उत्खन्न 1950 ईस्वी में राजेंद्र सिंह बिष्ट ने कराया था भारत में खोजे गए हड़प्पा कालीन दो विशाल नगरों में से एक है दूसरा विशालतम नगर हरियाणा का राखीगढ़ी है सिंधु सभ्यता के चाल विशालतम नगरों में धोलावीरा की गणना की जाती है जबकि अन्य तीन विशालतम नगर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, गनेड़ीवाल वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है श्री बिष्ट के अनुसार इस की जनसंख्या लगभग 20 हजार थी सिंधु सभ्यता के सभी नगर दो भागों में विभक्त थे जबकि धौलावीरा मात्र एक ऐसा नगर था जो तीन भागों में विभाजित किया गया था साथ ही यहां से परकोटेदार व्यवस्था इसकी प्रमुख विशेषताएं है धोलावीरा के उत्खनन में सर्वाधिक 7 स्तर के चिन्ह मिलते हैं विश्व की सबसे प्राचीन जल संरक्षण की पद्धति प्राप्त होती है

चन्हूदरो

चन्हूदरो क्षेत्र में सिंध नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से 80 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है इसका उत्खनन 1931 में एम जी मजूमदार ने कराया था यहां पर सेंधव सभ्यता के अतिरिक्त झूंगर झांगर संस्कृति के अवशेष भी मिले हैं चन्हूदरो मात्र एक स्थल है जहां से वक्राकार ईंटें मिली हैं यहां के निवासी कुशल कारीगर थे इसकी पुष्टि यहां से मिले अवशेषों जैसे अलंकृत हाथी तथा खिलौनों से होती है अन्य साक्ष्यों में बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते, लिपस्टिक आदि

चन्हूदरो से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य

पीतल की बदक, मानकों का कारखाना, गुरियों का कारखाना, एक पात्र पर बकरी को पेड़ के पत्ते खाते हुए दर्शाया गया है

लोथल

अहमदाबाद के निकट सागर तट पर गुजरात में भोगवा नदी के द्वारा समुद्र से जुड़ा लोथल एक सेंधव सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है  लोथल का उत्खनन 1955 से 1963 के मध्य आर एस राव ने कराया था यह पश्चिमी मेसोपोटामिया से व्यापार का प्रमुख केंद्र था इसे हड़प्पा सभ्यता का बंदरगाह या गोदीवाड़ा भी कहा जाता है यहां से मेसोपोटामिया की अनेक मोहरे भी मिली है इसके अतिरिक्त रंग में रंगे अनेक बर्तन मिले हैं लोथल नगर योजना हड़प्पा के समान थी लोथल की सबसे बड़ी उपलब्धि जहाजों की गोदी या बंदरगाह के रूप में थी मोहरे तथा पाषाण के बांट व माप के उपकरण मिले हैं
  • लोथल की मूर्तियां
  • तांबे का बना हंस 
  • धान के अवशेष

कालीबंगा 

कालीबंगा घघर नदी के किनारे गंगानगर राजस्थान में स्थित है इसका उत्खनन 1953 ईस्वी में श्री घोष ने कराया था बंगा से आशय चूड़ियों से है कालीबंगा के घर कच्ची वीडियो ईटों के बनते थे यहां पर हड़प्पा कालीन संस्कृत के 5 स्तर का पता चला है कालीबंगा से प्रमुख अवशेषों में हवनकुंड, बेलनाकार मोहरे, अन्नागार, अलंकृत ईट, युगल तथा प्रतीकात्मक समाधिया,

कालीबंगा के महत्वपूर्ण तथ्य 

अलंकृत ईंटों की फर्स, जले हुए खेतों के साक्ष्य, काले रंग की चूड़ियां

बनवाली

बनवाली हरियाणा के हिसार में स्थित है इसका उत्खनन राजेंद्र सिंह बिष्ट ने 1974 ईस्वी में कराया था जहां से प्राक हड़प्पा तथा हड़प्पा कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं बनवाली से मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तन, मोहरे, खिलौने, मातृ देवी की लघु मरण मूर्तियां, तांबे के बाण, चार्ट के फलक मिले हैं

सुरकोटदा

गुजरात में लुप्त सरस्वती नदी के किनारे स्थित है इसका उत्खनन 1972 ईस्वी में श्री जगत जोशी ने कराया था सिंधु सभ्यता के पतन के लक्षण दिखाई पड़ते हैं यहां से घोड़े की अस्थियां प्राप्त हुई हैं

आलमगीरपुर 

हिंडन नदी के किनारे मेरठ जनपद उत्तर प्रदेश में यह सिंधु सभ्यता का स्थल स्थित है इसका उत्खनन 1958 ईस्वी में श्री  यज्ञ दत्त शर्मा ने कराया था यह सिंधु सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल है

सिंधु सभ्यता के कलात्मक अवशेषों की विशेषताएं
हड़प्पा सभ्यता के के उत्खनन में प्राप्त अवशेषों के सर्वाधिक संख्या में मिट्टी के खिलौने मिले हैं और यह खिलौने संपूर्ण सेंधव सभ्यता के स्थलों से प्राप्त होते हैं
मूर्ति



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