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परितोष सेन PARITOSH SEN

कला में हमारा वास्ता सत्य के उद्घाटन से होता है जो कला जगत के प्राकृतिक इतिहास तक ही सीमित नहीं होता है सत्य एक ऐसा उद्घाटन इस इतिहास का सर्वोत्तम पक्ष और वास्तव में भारी श्रम और सांज्ञान के अत्यंत कठिन श्रम का सर्वोत्तम पुरस्कार है
 हेगेल 

भारतीय कला जगत में समय-समय पर कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जिन्होंने कला की भाषा को अपने अनुभवजन्य समकालीन शैलीयों से प्रेरित होकर अपनी एक अलग शैली का विकास किया ऐसे ही कलाकारों में परितोष सेन का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है

परितोष सेन का जन्म 1918 ईस्वी में ढाका जो अब बांग्लादेश में पड़ता है संपन्न परिवार में जन्मे सेन की कला शिक्षा मद्रास स्कूल आफ आर्ट में हुई जहां पर इन्हें देवी प्रसाद राय चौधरी का सानिध्य मिला परितोष सेन ने अपनी कला में सदैव सत्य का उद्घाटन करते रहे कला को निर्जीव से जीवंत बनाने के लिए सदैव प्रयास करते रहे व्यंग्य विनोद पूर्ण शैली शैली में चित्रित किया है 

परितोष सेन ने 1943 में कोलकाता आर्ट ग्रुप की स्थापना की गई जिसमें प्रदोष दासगुप्ता निरोद मजूमदार और गोपाल घोष जैसे कलाकार सम्मिलित थे यह ग्रुप तत्कालीन कला जगत की प्रस्तुतियों के बीच अनुभवों की सच्चाई को काला भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहता था बंगाल के अकाल पर इन्होंने एक श्रृंखला भी चित्रित की है अंग्रेजी सरकार द्वारा किए जाने वाले जोर जबस्ती के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई जिसका सामना सभी ने मिलकर किया तत्कालीन बंगाल की प्रस्तुतियों का अद्भुत चित्र परितोष सेन के चित्रों में दिखाई पड़ता है पारंपरिक रंगों में भूख मृत्यु के बीच दुःख पीड़ा  की आत्मा बंगाल के एक कंकाल को दर्शाता एक रेखा चित्र  है जो फेमीन स्ट्रीकेन चित्र में देखा जा सकता है

परितोष सेन ने आधुनिक भारतीय कला में अपनी विरासत के सहारे जुड़ाव और आधुनिकता के सफल समन्वय के लिए जाने जाते हैं उनकी कला में लोक तत्व हैं चित्र में पिकासो भी हैं पर कोई सीधे तौर पर नहीं दिखता पर सभी हैं कलाकार अपनी जड़ों से परंपरा में ही विकसित होती हैं स्वाभाविक रूप से परितोष पर बंगाल की सशक्त लोक परंपरा और मुहावरों का प्रभाव भी पड़ा, कालीघाट पेंटिंग  रंग उनके लोग मुहावरे उनके चित्र बाबू 1956, नारियल बेचने वाले 1996, को ब्लर 1998 में स्पष्ट देखे जा सकते हैं डी बुकिंग और जैकसन पोलॉक का भी प्रभाव सेन के चित्रों पर दिखाई पड़ता है

भारतीय कला में व्यंग विनोद की शैली में जो चित्रकारी हुई है द बाबू, द सारंगी, द प्ले, द बर्ड सेलर, द फैन विद हैंड फैन आदि चित्र महत्वपूर्ण है

द्वातीय विश्व युद्ध के समय भारत छोड़ो आंदोलन का समय मानसिक उद्योगों से भरा था हिंसा और समाज के भीतर विसंगतियों तथा सामाजिक समरसता के भाव से उपजी हिंसा को वह काफी गहरा महसूस कर रहे थे तो सामने कैनवास पर उतार रहे थे उनके चित्र तो एक तरह से हिंसा के विरुद्ध ही हैं शॉपिंग चिकन, रामायण, थ्रू द लेंस, साधु जैसी चित्र श्रृंखला में यह स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं

चित्रों का वैविध्य उनकी सामाजिक राजनीतिक प्रतिबद्धता की वजह से है यह प्रति प्रदर्शन संवेदनशीलता और व्यंग्य विनोद की शैली में अनूदित होकर दर्शकों के सम्मुख आती है आधुनिक भारतीय कला में प्रदर्शन अपने विषय, अपनी शैली, अपनी परंपरा और आधुनिकता के गहरे जुड़ाव और आधुनिक कला को नवीन दिशा देने के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे
Utopia by s sen, Source - Saffronart

परितोष सेन के चित्र  

काली जाकेट में आत्मा acrylic 2005, द बर्ड सेलर, द सारंगी प्लेयर, द बाबू, नारियल बेचने वाले, थ्रू द लेंस मेलो, बड़े गुलाम अली खां, द सिंगर, द दिलरुबा प्लेयर, म्यूजिक, कपल विद अंब्रेला

परितोष सेन की चित्र चित्रित श्रृंखला

 शॉपिंग चिकेन, रामायण, रामकृष्ण, साधु, थ्रू द लेंस 

परितोष सेन के जीवन से सम्बंधित अन्य तथ्य 

  • A tree in my village नाम से एक चित्र पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उनके जिंदाबबार लेन ढाका के अनुभव थे
  • ललित कला रत्न पुरुस्कार  2004
  • देवी प्रसाद राय द्वारा प्रकाशित कला पत्रिका प्रबासी को पढ़ने के बाद गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट चेन्नई में प्रवेश लिया

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