a ramchandran

ए रामचंद्रन का कला संसार 

कहते हैं मानव अपने सामाजिक परिवेश की प्रतिध्वनी ही होता है यह प्रतिध्वनी उतनी ही स्पष्ट दिखाई पड़ती है जितना उसका सामाजिकरण हुआ होता है सामाजिकरण ही व्यक्ति को समाज में व्यवहार के तौर तरीके सिखाता है एक कलाकार का सामाजिकरण का प्रभाव अत्यधिक पड़ता है जो उसकी सृजन क्षमताओं को और अधिक बढ़ा देता है तथा उसकी कला को समाज के और अधिक निकट लाता है ए रामचंद्रन में कुछ ऐसी ही विशेषताएं हमें दिखाई पड़ती हैं जिन्होंने सदैव केरल की अनुभूतियों को अपने चित्रों में स्थान दिया पेड़ दृश्य महिलाएं आदि बार-बार उकने चित्रों में देखे गए

 A Ramchandran का जीवन परिचय एवं शिक्षा 

a रामचंद्रन का जन्म 1935 ईस्वी में केरल में हुआ था इनका पूरा नाम अचेतन नायर रामचंद्रन है आरंभ से ही चित्रकला में विशेष रूचि थी महान मूर्तिकार रामकिंकर बैज की संथाल मूर्ति शिल्प को देखकर उन्होंने मद्रास के बजाए शांतिनिकेतन कला विद्यालय में प्रवेश लिया रामचंद्रन ने केरल की सांस्कृतिक परंपरा और सुंदर प्राकृतिक वातावरण को शुरू से ही अपने मन में बसाया रहे जो अनवरत उनकी कला साधना पर हावी रहा शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात भारतीय मंदिरों की समृद्ध परंपरा को देखा ए रामचंद्रन ने केरल में वॉल पेंटिंग (भित्तिचित्र ) की परंपरा पर अपना शोध कार्य किया  लगातार कार्य करते हुए ए रामचंद्रन का  निधन 2024 में  दिल्ली  में हुआ 

ए रामचंद्रन के जीवन से संबधित महत्वपूर्ण तत्व

जन्म           1935 केरल (Attingal,Thiruvananthapuram)
शिक्षा          शांतिनिकेत 
अध्यापन    जामिया दिल्ली
मृत्यु           10 फरवरी 2024 DELHI

ए रामचंद्रन की का यात्रा 

a रामचंद्रन कहते हैं मैंने अपने जीवन में दो चीजों से बहुत प्रेम किया पहला मेरी पत्नी चमेली दूसरा राजस्थान रामचंद्रन से राजस्थान का प्रेम एक अलग ही तरह का था आज इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है राजस्थान के और वहां के रहने वाले कलाकार भी इस प्रकार के रंग-रूप आकार और परंपरा का इतना अधिक आत्मसात नहीं कर पाए जितना कि रामचंद्रन ने किया 1989 में उर्वशी श्रंखला प्रकृति और सुंदरता के मेल को दर्शाती है इसके लिए रामचंद्र ने विश्व सुंदरियों को अपना आदर्श न मानकर बल्कि राजस्थान के बाड़मेर के भीलों में ही अपने नायिका को खोजा कमल के सरोवर में उर्वशी की दिव्य छलांग इस दुनिया के अच्छे होने की खबर नहीं है

रामचंद्र ने ययाति को अपना निजी नायक मानकर उसके लिए एक मंदिर बनाने की प्रक्रिया में की कल्पना की थी ययाति में भले ही देवता या ईश्वर बनने की क्षमता नहीं थी पर रामचंद्र ने उसे अपना देवता मानकर एक अद्भुत मंदिर बनाया है रंगों के मामले में रामचंद्रन ने केरल के भित्ति चित्रों से प्रेरणा प्राप्त की राजस्थान की घुमक्कड़ जाति गाड़िया लोहार के इस्त्री पुरुषों के जब उन्होंने स्केच बनाए तो उन्हें इन अद्भुत आदिवासियों में अजंता और बाघ की गुफा चित्रों की जीवंत उपस्थिति महसूस हुई रामचंद्रन के विशाल कैनवास काली पूजा 1972 के कटे सिर वाली आकृतियों को याद दिलाया जाए कब्र खोदने वाली पेंटिंग 1977 की भयावह कल्पना को देखा जाए तो यह याद की दुनिया किसी और कलाकार कल्पना को देखा जाए तो याद की दुनिया किसी और कलाकार की नजर आती है पूर्व ययाति दौर में रामचंद्रन के आधुनिक समाज में मनुष्य की स्थिति और दुर्दशा को लगभग एक यथार्थवादी अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं पोखरण राजस्थान में परमाणु विस्फोट ने राजस्थान से बहुत प्यार करने वाले रामचंद्रन की संवेदना को गहरा धक्का पहुंचाया 1975 में न्यूक्लियर रागिनी चित्र श्रृंखला ने जन्म लिया कलाकार का मन राजस्थान की सुंदर जगह के इस भयावह इस्तेमाल से बहुत दुखी था न्यूक्लियर में कटे फटे अंगों की भाषा थी चहरे छिपाए  राजस्थानी स्त्रियां थी एक चित्र में एक स्त्री की नग्न देह भी दिखाती है  

ए रामचंद्रन के दौर में कलाकार के पास इतने संसाधन नहीं हुआ करते थे कि वह जिस तरह चाहे वह सृजन कर सकता है फिर भी रामचंद्र ने कभी इनबंधनों में स्वयं को नहीं बांधा म्यूरल और वॉल पेंटिंग की कई परंपराओं से रामचंद्र का संवाद होता था केरल और अजंता के भीतर चित्र ही नहीं मैक्सिको के महान सार्वजनिक कलाकारों ओरोस्को, रिवेरा और सिकेरोस से भी रामचंद्रन ने कला की भाषा सीखी थी सतीश गुजराल भी इन कलाकारों के से सीख चुके थे परंतु इन दोनो संवेदना और पृष्ठभूमि वाले कलाकारों ने मैक्सिको की कला से अलग-अलग ढंग का संवाद स्थापित किया इसको के कलाकार जिस तरह से परंपरा, मिथिक और लेजेंड्स का इस्तेमाल कर रहे थे वह रामचंद्रन को भारतीय कला के लिए भी जरूरी महसूस हुआ रामचंद्र ने एक इंटरव्यू में कहा कि यूरोप का इतिहासकार इन कलाकारों के काम को इलस्ट्रेशन और प्रचार के रूप में देखते हैं नतीजा यह है कि भारत में भी जर्मन अभिव्यंजनावाद को अधिक महत्व दिया गया इसके बावजूद भी भारतीय कलाकार के लिए मैक्सिको की कला परंपरा अधिक उत्तेजक और प्रासंगिक थी

रामचंद्रन जीवन के अंतिम समय में कला संग्रहालय बनाने के लिए प्रयासरत हैं इस संग्रहालय में पुराने कार्यों को प्रदर्शित करना उनका लक्ष्य वह जहां भी जाते पुराने प्रदर्शित काम को देखकर अपने संग्रह में खरीद कर रख लेते

ए रामचंद्रन के चित्र

पोट्रेट आफ यमुना तैलंग 1998, हन्ना एंड हर गोट्स तैल 1994, चमेलियोन एंड द बटरफ्लाई तैल 1991, कंचन ट्री एंड ड्रैगन फ्लाईज1995 तैल, ऑरेंज लोटस पॉन्ड, काली पूजा, महुआ ट्री, खिलाड़ी, 

A रामचंद्रन द्वारा निर्मित चित्र श्रृंखला

ययाति 1986 म्यूराल, उर्वशी 1989,  काली 1972, न्यू कलर रागिनी 1975, आइनोग्राफी 

रामचंद्रन के जीवन पर आधारित फिल्म

वल्ड ऑफ द लोटस पॉन्ड नाम से 2004 में बनी

 ए रामचंद्रन के पुरस्कार

2005 पदम्  भूषण 

2002 ललित कला अकादमी फैलोशिप 



Yakshi of Pai Village
Yakshi of Pai Village, Screen print by A Ramchandran 

 
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