art college

भारत के प्रमुख कला विद्यालय


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Rajasthan school of art Jaipur
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट जयपुर 

देश में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए मद्रास, कोलकाता के बाद इसी क्रम में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट की स्थापना जयपुर में की गई इससे पहले इसे मदरसा ए हुनरी नाम से जाना जाता था इसके प्रथम प्रधानाचार्य डॉक्टर सी एस वैलेंटाइन हुए हैं इस कला विद्यालय को असित कुमार हाLलदार, शैलेन्द्रनाथ डे, हिरण राय चौधरी तथा कुशल कुमार मुखर्जी ने प्रधानाचार्य और उप प्रधानाचार्य पद पर कार्य किया शैलेन्द्रनाथ डे राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के उत्थान में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया इसके इनके प्रमुख शिष्य में रामगोपाल विजय वर्गीय, देवकीनंदन शर्मा, परमानंद चोयल आदि हैं यहां से बीएफए और एमएफए कोर्स संचालित हो रहे हैं 

राजस्थानी चित्रकला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कला संरक्षक और कला प्रेमी महाराज सवाई राजा राम सिंह द्वितीय ने जयपुर में 1857 में मदरसा ए हुनरी नामक कला संस्थान की स्थापना की 1886 में महाराजा कला और शिल्प विद्यालय के रूप में जाना गया है जिसे आगे चलकर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में परिवर्तित कर दिया गया जयपुर कला विद्यालय में ने राजस्थानी कला और संस्कृति को संरक्षित और पोषित करने का कार्य किया है आज भी यह विद्यालय प्रदेश की कलात्मक धरोहर को आगे बढ़ा रहा है तथा देश की समकालीन कला के लिए नए आयाम विकसित कर रहा है


Lahore Kala Vidyalay

कॉलेज आफ आर्ट एंड क्राफ्ट लाहौर की स्थापना 1875 ईस्वी में हुई मैं इसके प्रधानाचार्य जान लाक वुड किपलिंग थे यहां पर धातु शिल्प ढलाई कास्ट एवं चित्रकला के पाठ्यक्रम संचालित किए गए अवनींद्र नाथ टैगोर के शिष्य समरेंद्र नाथ गुप्त यहां के प्रधानाचार्य नियुक्त हुए तब बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट का भी प्रभाव यहां पर स्पष्ट रूप से देखा गया 1929 से 1936 तक यहां पर B C Sanyal कला शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए परंतु भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद यह विस्थापित होकर दिल्ली लौट आए B C Sanyal ने ने लाहौर स्कूल आफ फाइन आर्ट नाम से अपना एक कला स्टूडियो प्रारंभ किया है जिसे बाद में सन्याल स्टूडियो के नाम से भी जाना गया यहां से धनराज भगत, अमरनाथ शहगल, कृष्ण खन्ना आदि ने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की आज कला विद्यालय को नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट लाहौर के नाम से भी जाना जाता है यहां पर स्नातक और परास्नातक स्तर के कोर्स संचालित किए जा रहे हैं और ललित कलाओं के विकास में आज भी पाकिस्तान में यह कला संस्थान अपना योगदान देता चला रहा है

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Lucknow Kala Vidyalaya

लखनऊ कला विद्यालय की स्थापना 1911 में हुई थी इसे स्कूल आफ डिजाइन के नाम से जाना गया इसके प्रथम प्रधानाचार्य नैथेनियल हर्ड थे नियर थे असित कुमार हलदर 1925 में प्रथम भारतीय प्रधानाचार्य बने इस कला विद्यालय के विकास में सुधीर रंजन खास्तगीर, रणवीर सिंह बिष्ट, जे एम अहिवासी, श्रीधर महापात्र,  विश्वनाथ मुखर्जी आदि ने अपना सक्रिय योगदान दिया आज भी यह कला संस्था उत्तर प्रदेश का कला जगत में नाम रोशन कर रही है

Government College of art and craft Chennai


इस कला विद्यालय की स्थापना 1850 ईसवी में डॉक्टर अलेक्जेंडर हंटर द्वारा मद्रास स्कूल आफ आर्ट नाम से की गई जिसका बाद में नाम बदलकर गवर्नमेंट स्कूल ऑफ इंडस्ट्रियल आर्ट कर दिया गया 1984 ईस्वी में E V हवैल ने यहां के प्रधानाचार्य पद ग्रहण किया है यहीं से इस विद्यालय की उन्नति प्रारंभ हुई उन्होंने भारतीय कलाओं को अत्यधिक बढ़ावा दिया साथ ही 1929 ईस्वी में मूर्तिकार देवी प्रसाद राय चौधरी को यहां का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया है  या कला विद्यालय आज भी देश की कलाओं के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहा है

Government college of art and craft Kolkata


कोलकाता कला विद्यालय की स्थापना 1854 ईसवी में हुई थी जिसे स्कूल आफ इंडस्ट्रियल आर्ट के नाम से जाना गया 1864 में सरकार ने इसे अपने अधीन कर लिया और यह गवर्नमेंट कॉलेज आफ आर्ट एंड क्राफ्ट के नाम से जाना लगा लॉर्ड नार्थब्रुक के नेतृत्व में इसका संचालन प्रारंभ हुआ यहां से अवनींद्र नाथ टैगोर, सुरेंद्र नाथ गांगुली, असित कुमार हलदर, क्षितिंद्र नाथ मजूमदार, के  बैटप्पा, शैलेंद्र नाथ डे, समरेंद्र नाथ गुप्त, शारदा चरण वकील, नंदलाल बोस, सुधीर रंजन खस्तगीर, मनीष डे आदि प्रसिद्ध कलाकारों ने शिक्षा प्राप्त की जिन्होंने देश के अन्य भागों में जाकर कला का अनवरत प्रचार प्रसार किया पारसी ब्राउन ने प्रधानाचार्य पद ग्रहण करते ही रॉयल अकैडमी आफ लंदन के पाठ्यक्रम को पुनः लागू किया

सर जे जे स्कूल आफ आर्ट्स मुंबई

यह कला विद्यालय एलिफिस्टोन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट एंड इंडस्ट्री में विलियम जैरी द्वारा 1857 में प्रारंभ किया गया 1878 में यह अपने वर्तमान भवन सर जे जे स्कूल आफ आर्ट में हस्तांतरित कर दिया गया जॉर्ज ग्रिफिथस तथा पेस्टोनजी बोमानजी का इस कला विद्यालय के विकास में महत्वपूर्ण योगदान इसका पाठ्यक्रम लंदन की रॉयल अकैडमी आफ फाईन आर्ट पर आधारित  1958 ईस्वी के पश्चात जे जे इंस्टीट्यूट आफ अप्लाइड आर्ट्स के रूप में पहचाना जाता है 1923 ईस्वी में दी इंडियन रूम नामक एक गौरवशाली योजना प्रारंभ की गई जिसका उद्देश्य समकालीन भारतीय कला को प्रदर्शित करना था स्वतंत्रता पश्चात वासुदेव अर्दुरकार प्रथम भारतीय अधीक्षक नियुक्त किए गए इस महाविद्यालय में कला दीर्घा और पुस्तकालय भी उपलब्ध हैं यहां से स्नातक और परास्नातक स्तर के कोर्स किए जाते हैं

राजस्थान स्कूल आफ आर्ट

राजस्थान कला विद्यालय की स्थापना 1857 ईसवी में हुई थी सवाई राजा रामसिंह द्वितीय 1857 ईसवी में मदरसा ए हुनरी नाम से इस कला विद्यालय की स्थापना की जो सिटी पैलेस के महल में स्थापित किया गया इसके प्रथम प्रधानाचार्य डॉ सी एस वैलेंटाइन थे कालांतर में जयपुर स्कूल आफ आर्ट, महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के नाम से जाना गया है इस महाविद्यालय में असित कुमार हलदर, शैलेंद्रनाथ डे, हिरण राय चौधरी प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया वर्तमान में यह विद्यालय राजस्थान की कला एवं संस्कृति तथा भारतीय कला को गौरवान्वित कर रहा है


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इस कला विद्यालय की स्थापना 1875 में की गई इसके प्रथम प्रधानाचार्य जान लाकवुड किपलिंग थे यहां पर बी सी सान्याल भी कला शिक्षक के रूप में कार्य कर चुके हैं इनके समय में लाहौर स्कूल आफ फाइन आर्ट के नाम से जाना गया यह पाकिस्तान का आज राष्ट्रीय कला विद्यालय है वर्तमान में यह कला विद्यालय पाकिस्तान में स्थित है धनराज भगत, अमरनाथ सहगल, कृष्ण खन्ना आदि ने अपने आरंभिक जीवन की शुरुआत इसी कला विद्यालय से की थी इसे वर्तमान में नेशनल कॉलेज आफ आर्ट लाहौर के नाम से जाना जाता है

कला भवन शांतिनिकेतन वीरभूमि पश्चिम बंगाल

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन में स्थापना की यहीं पर 1919 ईस्वी में कलाओं को बढ़ावा देने के लिए कला भवन की स्थापना की जो आगे चलकर 1921 में विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन से संबद्ध कर दिया गया नंदलाल बोस को प्रथम अधीक्षक नियुक्त किया गया हां पर पुस्तकालय व नंदन म्यूजियम भी स्थित है यह कला विद्यालय कोलकाता की भागदौड़ भरी जिंदगी से एकदम शांत और प्राकृतिक वातावरण में स्थित था जिसका प्रभाव यहां की कलाओं में भी देखा जा सकता है वर्तमान में यह संस्थान देश की कलाओं को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है नंदलाल बोस, विनोद बिहारी मुखर्जी, रामकिंकर बैज आदि यहां सक्रिय रूप से शिक्षक के तौर पर कार्य करते रहें

गवर्नमेंट कॉलेज आफ फाइन आर्ट इंदौर इंदौर

इस कला विद्यालय की स्थापना में दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर का महत्वपूर्ण स्थान है इस महाविद्यालय को चित्रकला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है 1927 ईस्वी में किसकी स्थापना की गई इसे देवलालीकर स्कूल आफ आर्ट के नाम से भी जाना जाता है यहां से एन एस बेंद्रे, देवकृष्ण, जटाशंकर जोशी, विष्णु चिंचालकर, सालेगांवकर, एम एफ हुसैन आदि प्रतिष्ठित कलाकार निकले जिन्होंने राष्ट्रीय फलक पर एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश का नाम रोशन किया यह कला विद्यालय वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थित है

राजस्थान चित्रकला विभाग वनस्थली विद्यापीठ राजस्थान

वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना प्रोफ़ेसर देवकीनंदन शर्मा ने 1937 ईस्वी में की थी यह देश का संभवत मात्र एक एक ऐसा संस्थान है जो भित्ति चित्रण की जयपुरी तकनीकी या अराइज तथा इटालियन तकनीक में शिक्षा प्रदान करता है यहां से भित्ति चित्र परंपरा में विनोद बिहारी मुखर्जी, शैलेंद्र नाथ डे, एन एस बेंद्रे, शांति देवें, ज्योति भट्ट, के वी हरिदर्शन, आर डी भास्करण, m.k.m. आदिमुलम, विकास भट्टाचार्य ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है विद्यापीठ में आज भी भित्ति चित्रों की ग्रीष्मकालीन कार्यशाला आयोजित की जाती है यहां से बीए और एमए मैं ड्राइंग विषय की शिक्षा दी जाती है


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