करवा चौथ और लोक कलाओं का अद्भुत संसार

करवा चौथ और लोक कलाओं का अद्भुत संसार

करवा चौथ की पूजा में प्रयोग होने वाली सींके

करवा चौथ की पूजा में प्रयोग होने वाली सींके


           भारत उत्सवधर्मी देश है जहां पर प्रत्येक मास में कोई न कोई तीज त्यौहार अवश्य होता है इन अवसरों पर घरों को विशेष रुप से अलंकृत और सुसज्जित किया जाता है आस्था एवं विश्वास को मूर्त रूप देने के लिए कुछ चित्रों का निर्माण किया जाता है जो हमारी लोककला का प्रतिनिधित्व करते हैं जो परंपरा मुख्य रूप से परिवार की स्त्रियों द्वारा ही आगे बढ़ाई जा रही है जो किसी संस्थान में जाकर कलाकारी नहीं सीखाती हैं फिर भी उन्हें अपनी विरासत से चित्रण का अद्भुत कौशल प्राप्त होता है वैसे तो यह चित्र प्रतीक या किसी कहानी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उस त्यौहार की मूल आत्मा होती है सभी लोग इन्हीं को उस शक्ति का स्वरूप मानकर पूजा अर्चना करती हैं जो उनके कुल समाज परिवार की रक्षा और समृद्धि प्रदान करती है

      करवा चौथ हमारे देश का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है इस अवसर पर सुहागन स्त्रियां व्रत रखती है यह त्यौहार उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश पंजाब हरियाणा दिल्ली राजस्थान आदि राज्यों में मुख्य रूप से मनाया जाता है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्त्रियां बिना जल अनं ग्रहण किए व्रत रहती हैं और चंद्र दर्शन के साथ ही व्रत पूर्ण होता है माना जाता है ऐसा करने से पति और पत्नी के बीच में संबंध और प्रगाढ़ होते हैं तथा पति की आयु में वृद्धि होती है

करवा चौथ
करवा

 करवा चौथ पर बनाए जाने वाले चित्र

      करवा चौथ के अवसर बनाए जाने वाली आकृतियों में सूर्य चंद्र गौरी शिव गणेश आदि का प्रमुखता के साथ अंकन किया जाता है इस अवसर पर प्रचलित लोक कथाओं को भी चित्रों के रूप में अंकित किया जाता है इन कथाओं के माध्यम से इस त्यौहार के महत्व और लाभ को भी दर्शाया जाता है भाई को अपनी बहन के यहां करवा ले जाते हुए, महिलाएं अपने पति का चलनी में रुप देखती हुई, चंद्र देव की पूजा अर्चना कर अर्घ अर्पित करती हुई, साथ ही विविध प्रकार के जीव जंतुओं पक्षियों एवं वनस्पतियों को भी चित्र में उचित और पर्याप्त स्थान दिया जाता है जो मानव और प्रकृति के अंतर्संबंध का भी परिचायक है

          इन चित्रों के महज सीधे सरल नजर आने वाले रूपाकारों का अपना विशेष महत्व है जो पुरातन से चली आ रही इस परंपरा को हमारे सम्मुख आज भी रखते हैं तथा मनुष्य और प्रकृति के संबंध को भी उजागर करते हैं इस त्योहार पर प्रयुक्त होने वाली सामग्री अक्सर हम अपने आसपास से ही एकत्र करते हैं परंतु इस आधुनिकतावादी युग ने घरों पर निर्मित होने वाले चित्रों की संख्या में कमी अवश्य कर दी है आज अधिकांश पक्के होते हैं जिन पर बार-बार चित्र बनाना उचित नहीं माना जाता है परंतु फिर भी इन लोकचित्रों का जनमानस में इतना अधिक विश्वास व्याप्त है कि प्रतीक के रूप में बाजार में उपलब्ध चित्रों को ही दीवारों पर लगाकर पूजा अर्चना की जाती है बहुत से घरों में छत पर भी चित्र निर्मित किए जाते हैं

                   विकास के साथ-साथ आज घरों में इस अवसर पर विविध प्रकार की रंगोलियां बाजार में उपलब्ध रंगों के द्वारा बनाई जाती है तरह तरह की रंगीन लाइटों का भी अब प्रयोग होने लगा है फिर रिवाजों के अनुसार चावल को पीसकर कुछ चित्र अंकित आकृतियां आज भी अंकित की जाती है

              कुछ समय पहले दीवालो को सफेद चुने या गोबर से लिप कर उस पर कोयला तथा स्थानीय उपलब्ध रंगों के द्वारा चित्र निर्मित किए जाते थे जो प्रायः वर्गाकार या आयताकार आकार में बनाए जाते थे चित्रों को चौड़े बॉर्डर से सजाया भी जाता था जिनमें फूल या कोई ज्यामितीय पैटर्न का प्रयोग किया जाता था इस प्रकार से निवृत चित्रों से घर आंगन का सारा परिवेश उमंग से परिपूर्ण हो जाता था जिसे देखकर ह्रदय में एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती थी जो हमें शांति प्रदान करता था और आह्लाद से परिपूर्ण कर देता था

करवा चौथ पर बनाए जाने वाले चित्र में प्रयुक्त सामग्री


             गेरू कोयला वानस्पतिक रंग सिंदूर आदि का प्रमुखता के साथ उपयोग किया जाता था परंतु वर्तमान समय में बाजार से उपलब्ध रंग भी प्रयोग में लाए जाते हैं सफेद कलर के लिए चावल पीसकर प्रयोग में लाया जाता था


निर्माण विधि

करवा चौथ पूजा का चित्र

       दीवाल को पिसे हुए चावल या चूने लेप से अच्छी तरह लिपकर तत्पश्चात कोयले की सहायता से आकृतियां बनाई जाती हैं साथ ही बॉर्डर भी बनाया जाता है तत्पश्चात रूई और सींक की सहायता से रंग भरे जाते हैं कहीं-कहीं पर बाजार में उपलब्ध ब्रस व रंगों का भी प्रयोग किया जाता है

        चित्र बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए सींक पर लगी हुई रूई में उतना ही रंग भरे जितना कि वह वहन कर सके ऐसा न करने पर रंग पूरी दीवाल पर रंग गिरने की संभावना बनी रहती है जिससे सतह खराब हो सकती है और चित्र की सुंदरता में कमी आ सकती है

     इस प्रकार हमें लोककलाओं का वास्तविक स्वरूप इन्हीं तीज त्योहारों पर दिखाई पड़ता है विकास के दौर में हम बहुत आगे निकल चुके हैं  लोककला पर सेमिनार और वर्कशॉप के अलावा इनके संरक्षण के लिए धरातल पर अभी तक कोई ठोस कदम दिखाई नहीं दे रहा है जो भी हुआ है वह संग्रहालय में संग्रह तक ही सिमट कर रह गया है लेकिन जब हम समाज में इस प्रकार के आयोजनों पर लोक कलाओं का जो स्वरूप देखते हैं वह अवश्य ही हृदय को आनंद प्रदान करता है साथ ही यह भी आस्वस्त करता है की  लोककलाएं हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही बढ़ती रहेंगी

करवा चौथ पूजा
करवा चौथ पूजा
       

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