मन की बात

 

मन 

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विषाद 

             मन कितना सुंदर शब्द है हो भी क्यों ना कहते हैं मन चंचल यानी गतिशील है अधिकांश विद्वान मानते हैं जो वस्तुएं गतिशील हैं वह सुंदर होती है इसी दृष्टि से मन भी सुंदर होगा ऐसा मुझे लगता है पर जो चंचल है वह भला नियंत्रण में कहां रहता है जिस पर हमारे मस्तिष्क का नियंत्रण ना हो उस पर उचित अनुचित जैसे शब्दों का प्रयोग का मतलब ही क्या है जब बारूद में आग लग ही गई तो विस्फोट से क्या डरना कहने का आशय यह है कि विस्फोट की मात्रा बारूद की मात्रा पर निर्भर करती है ठीक उसी प्रकार हमारी रुचि या मनोभाव निर्धारित करते हैं कि मन कितना और कहां पर चंचल होता है यहां पर मन को मैं समाज में जिस व्यवहार की स्थिति में योग होता है उसी के अर्थ में कर रहा हूं यह स्पष्ट करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि शब्दकोश या किसी परिभाषा के अनुसार इसका वास्तविक मस्तिष्क से जोड़ा जाता है
           मन हमारे भावों का ही एक रूप है जो यह दर्शाता है कि उक्त वस्तु से हमारा संबंध कैसा होगा कई बार हम चाहते हैं कि इस अमुक कार्य को नहीं करूंगा पर मन है कि मानता नहीं इसमें सारा दोष मन का नहीं है मन तो आदतों का गुलाम है जो स्वयं गुलाम हो वह भला दूसरों को कैसे भटका सकता है हमारी आदतें अच्छी बुरी होती हैं वही हमारे मनोभावों को दर्शाती हैं कार्य करने से पहले हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं कि अमुक कार्य गलत है इसे नहीं करना चाहिए पर हमारी आदतें उस आवाज को दबा देती है और मस्तिष्क को यह आदेश देने पर मजबूर कर देती हैं कि मन हमें उक्त स्थान पर ले जाए
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मन की कोमलता 

            ईश्वर का हमें धन्यवाद करना चाहिए कि हमें एक ऐसा शरीर दिया है जिससे प्रत्येक कार्य को आसानी से कर सकें ऐसी शक्ति प्रदान की है इसके साथ ही हमें कुछ ऐसा प्रदान किया है जो समस्त जीव धारियों को प्राप्त नहीं है वह है एक प्रगतिशील मस्तिष्क, मनुष्य प्रत्येक कार्य करने से पहले भली-भांति सोच समझकर कार्य करता है पर आप ने इसी समाज में देखा होगा कि बहुत सारे व्यक्ति उचित अनुचित का व्यापक ज्ञान रखते हैं फिर भी अपनी आदतों के गुलाम होते हैं आपने किसी शराबी को देखा है कितना  भी संवेदनशील क्यों ना हो जब उस व्यक्ति को शराब की आवश्यकता महसूस होती है तो वह उसे प्राप्त करने के लिए अपनी अनमोल से अनमोल चीज का बलिदान करने से भी नहीं चूकता ऐसा नहीं है कि उसके अंदर विवेक नहीं है पर उसका मन उस बुरी आदत का गुलाम है इसी कारणवश वह उस समय इच्छा की पूर्ति के अतिरिक्त अन्य किसी भी पक्ष पर विचार नहीं कर पाता बस उसकी तृष्णा शांत होनी चाहिए मूल्य चाहे जो भी हो
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चिंतन 

            इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को मस्तिष्क की सत्ता को स्वीकारते हुए भली-भांति सोच विचार कर कार्य करना चाहिए मन तो हमेशा चंचल रहेगा पर उसकी चंचलता को शांत करने के लिए उस पर लगाम लगाना आवश्यक है अगर कोई व्यक्ति ऐसा कर पाए तो निश्चित तौर पर वह श्रेष्ठ बन सकता है यह कार्य कोई असंभव नहीं है न हीं इसके लिए किसी विशेष प्रकार की साधना की आवश्यकता है बस आवश्यकता है तो एक दृढ़ संकल्प की जो व्यक्ति को स्वयं संयमित कर सके और निर्णय लेने के समय अंतः करण को शांत रखते हुए हर प्रकार से परखने की शक्ति प्रदान कर सकें
           प्रत्येक मनुष्य को अपनी आदतों का विकास ऐसा करना चाहिए जो उसके विकास को समर्पित हो किसी अपयश के मार्ग पर न ले जाएं प्रगतिशील आदतें ही मन को प्रगतिशील राहों की तरफ ले जाती है अतः हमें अपने परिवेश को किस प्रकार से जीवंत बनाना चाहिए जो मन को सुंदर सहज सरल आडंबर रहित निश्चल परिवेश की तरफ ले जाए
             मन का अपना अस्तित्व भले ही कहने में स्वतंत्र लगता हूं पर वह कई क्रियाओं का परिणाम होता है जो हमें दिखाई नहीं देती पर इन सभी क्रियाओं को संयमित कर हम मन को शुद्ध कर सकते हैं जो हमें निश्चित रूप से एक उज्जवल भविष्य की तरह ले जाएगा



       

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