भारतीय कला के हस्ताक्षर' पुस्तक के लेखक हैं?
1 ज्योतिष जोशी
2 आनन्द कृष्ण
3 सुनीत चोपड़ा
4 राय कृष्ण दास
उत्तर 1 ज्योतिष जोशी
स्पष्टीकरण
पुस्तक के मुख्य बिंदु:
- विषय: पुस्तक आधुनिक भारतीय कला के महत्वपूर्ण चित्रकारों और उनके कार्यों का विश्लेषण करती है।
- लेखक: डॉ. ज्योतिष जोशी, जो दिल्ली स्थित एक कला समीक्षक, लेखक और स्तंभकार हैं।
- भाषा: पुस्तक हिंदी में उपलब्ध है।
- प्रकाशन: इसका प्रकाशन भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा किया गया है।
- उद्देश्य: आधुनिक भारतीय कला को एक पहेली न बनाकर, कला-आलोचना को समृद्ध करना और आम पाठकों तक पहुँचाना है।
- यह पुस्तक आधुनिक भारतीय चित्रकला को समझने और उसका मूल्यांकन करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो कलाकारों के भाव-पक्ष और उनकी कला को गहराई से समझने में मदद करती
ज्योतिष जोशी
- जन्म : 6 अप्रैल 1965; बिहार राज्य के एक गाँव धर्मगता (जनपद – गोपालगंज) में।
- शिक्षा : उच्च शिक्षा (एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी.) दिल्ली विश्वविद्यालय तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से।
- प्रकाशन : साहित्य, नाटक रंगमंच तथा चित्रकला की आलोचना में विशेष ख्याति ।
- अपनी परम्परा तथा संस्कृति के मूल्यवान विचारों को समकालीन सन्दर्भों में विश्लेषित करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति इनकी 23 मौलिक पुस्तकें हैं, तो अनेक सम्पादित पुस्तकें भी ।
- चर्चित कृतियाँ हैं- आलोचना की छवियाँ, जैनेन्द्र और नैतिकता, उपन्यास की समकालीनता, शमशेर का अर्थ, साहित्यिक पत्रकारिता, रूपंकर, कृति-आकृति, भारतीय कला के हस्ताक्षर, आधुनिक भारतीय कला, रंग-विमर्श, दृश्यान्तर, समय और साहित्य, आलोचना का समय, बहुव्रीहि, तुलसीदास का स्वप्न और लोक, नौटंकी : लोक-परम्परा और संघर्ष (आलोचना); अनासक्त आस्तिक (जैनेन्द्र कुमार की जीवनी) तथा सोनबरसा (उपन्यास) ।
- सम्मान : उल्लेखनीय लेखन के लिए अनेक सम्मान तथा फ़ेलोशिप प्राप्त ।
- कार्य : ललित कला अकादेमी में सम्पादक सहित कई पदों पर काम कर चुके श्री जोशी हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव भी रह चुके हैं। सम्प्रति : नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय, नयी दिल्ली में सीनियर फ़ेलो।
डॉ. ज्योतिष जोशी दिल्ली स्थित लेखक, कला समीक्षक और स्तंभकार हैं। वे वर्तमान में ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित दृश्य कलाओं पर आधारित हिंदी पत्रिका "समकालीन कला" के संपादक हैं । वे जेआरएफ स्कॉलर रहे हैं और हिंदी साहित्य में पीएचडी (लेखक जैनेंद्र जैन के उपन्यासों पर) की उपाधि प्राप्त की है। वे कथादेश , दैनिक जागरण और रंगायन जैसे हिंदी प्रकाशनों के लिए कला और कला आलोचना पर स्तंभ लिखते हैं । उन्होंने साहित्यिक आलोचना और कला आलोचना पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं, जिनमें से सबसे हालिया "भारतीय कला के हस्ताक्षर" है , जिसमें उन्होंने भारत के कुछ सबसे कुशल समकालीन दृश्य कलाकारों का परिचय दिया है।
भारतीय कला: चिंतन और चयन नामक इस परियोजना के दो चरण हैं। पहले चरण में डॉ. जोशी पिछली शताब्दी में हिंदी में कला पर हुए लेखन की समीक्षा करेंगे और 100 से अधिक प्रतिनिधि लेखों का चयन करेंगे जो इस भाषा में दृश्य कलाओं पर आलोचनात्मक लेखन के विकास को दर्शाते हैं। दूसरे चरण में, वे बीसवीं शताब्दी के 50 प्रमुख दृश्य कलाकारों के योगदान का मूल्यांकन करते हुए हिंदी में विस्तृत, विश्लेषणात्मक निबंध तैयार करेंगे। डॉ. जोशी का मानना है कि दृश्य कलाओं पर आलोचनात्मक लेखन भारत में अध्ययन का एक उपेक्षित क्षेत्र रहा है। इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं कि कलाओं पर लेखन का न केवल संस्कृत में, बल्कि पाली, अपभ्रंश और प्राकृत जैसी प्राचीन भाषाओं में भी एक लंबा इतिहास रहा है। आधुनिक हिंदी में भी कलाओं पर लेखन की परंपरा एक शताब्दी से भी अधिक पुरानी है। बीसवीं शताब्दी में सामान्य रूप से कलाओं, और विशेष रूप से दृश्य कलाओं पर, हिंदी में लेखन का एक बड़ा और विविध संग्रह देखा गया है। डॉ. जोशी दृश्य कलाओं पर निबंध और लेख संकलित करेंगे, जिनमें लेखक और बुद्धिजीवी आधुनिकतावादी दृष्टिकोण से उत्पन्न मुद्दों पर बहस करेंगे और 'स्वदेशी' कला रूपों को प्रभावित करने वाली प्रक्रियाओं की आलोचना करेंगे। वे निबंधों को उस कालखंड के अनुसार व्यवस्थित करेंगे जिसमें वे लिखे गए थे ताकि दृश्य कलाओं की प्रथाओं और चिंताओं में आए बदलावों को दर्शाया जा सके। इसके बाद वे किसी विशेष युग में सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ और आलोचनात्मक बहसों की प्रकृति के बीच संबंधों का विश्लेषण करेंगे। डॉ. जोशी बताते हैं कि दृश्य कलाओं की अवधारणा और समाज में कलाकार के स्थान में पिछले कुछ वर्षों में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। अंतर्राष्ट्रीय कला बाजार के तीव्र विकास ने दृश्य कलाओं को जनता द्वारा देखने के तरीके और कलाकारों द्वारा अपने काम को देखने के तरीके को स्पष्ट रूप से बदल दिया है। स्वदेशी कलाएँ, जो पारंपरिक रूप से अपने तात्कालिक संदर्भों से जुड़ी रही हैं, अब वैश्विक बाजार की ताकतों के मद्देनजर अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।
डॉ. जोशी के संकलन में भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रताप नारायण मिश्र, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, श्रीकांत वर्मा, विद्यानिवास मिश्र और निर्मल वर्मा आदि की रचनाएँ शामिल होंगी। वे 100 से अधिक लेखकों के निबंधों में से कुछ का चयन करेंगे और फिर उन निबंधों को एक व्यापक भूमिका के साथ प्रस्तुत करेंगे। अगले चरण में, वे बीसवीं सदी के 50 प्रमुख दृश्य कलाकारों के कार्यों का आलोचनात्मक अध्ययन करेंगे, जिन्होंने आधुनिकतावाद से जुड़ाव दिखाया है और समकालीन भारत में दृश्य कलाओं की दिशा तय की है। वे राजा रवि वर्मा, अवनींद्रनाथ टैगोर, अमृता शेरगिल, नंदलाल बोस, कृष्णा रेड्डी, एसएच रजा, एमएफ हुसैन, विकास भट्टाचार्य, शंको चौधरी, परितोष सेन और अंजलि इला मेनन की कृतियों की समीक्षा और मूल्यांकन करेंगे। वे उनकी कृतियों पर उपलब्ध साहित्य की समीक्षा/विश्लेषण भी करेंगे। उनके शोध का परिणाम हिंदी में समकालीन कला का पहला व्यवस्थित और गहन आलोचनात्मक अध्ययन होगा। डॉ. जोशी ने संकेत दिया है कि मेधा बुक्स, यश पब्लिकेशन्स और वाणी प्रकाशन उनकी पांडुलिपि प्रकाशित करने में रुचि लेंगे।
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