मूर्तिकार संखो चौधरी की कला यात्राSculpture Sankho Chaudhari
एक कलाकार को जो चीज बनती है वह है जीवन के सभी प्रारूपण और हर स्तर पर प्रक्रिया करने की
उसकी क्षमता
शंखों चौधरी
संथाल परगना (बिहार) में 1916 में जन्म।
1939 में शांति निकेतन से कला में बी.ए.।
1945 में शांति निकेतन से डिप्लोमा, मूर्तिशिल्प में विशेष योग्यता के साथ।
1945 में राम किंकर के साथ नेपाल गए-युद्ध स्मारक में उनकी सहायता के लिए।
नेपाल में धातु में 'कास्टिंग' का अध्ययन किया। फिर यूरोप गए। पेरिस और इंग्लैंड में काम किया।
वड़ोदरा कला महाविद्यालय से जुड़े। यहां रीडर, प्रोफेसर और डीन जैसे सम्मानित पदों पर रहे। फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और विश्वभारती, शांति निकेतन आदि में अतिथि प्रोफेसर, फैलो आदि के रूप में संबद्ध रहे। 1980 में तंजानिया में दारेस्लाम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद नियुक्त हुए।
ललित कला अकादेमी के अध्यक्ष भी रहे हैं।
- 1956 में अकादेमी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
- 1971 में पद्मश्री।
- 1982 में अकादेमी की रत्न सदस्यता ।
- 1949 में एकल प्रदर्शनियों का सिलसिला शुरू।
शंखो चौधरी देश के वरिष्ठ मूर्तिशिल्पियों में से हैं। शंखो चौधरी के काम के बारे में कार्ल खंडालावाला की टिप्पणी है, "वे एक साथ ही प्रयोगधर्मी कलाकार, परंपरावादी और आधुनिक हैं। अभिव्यक्ति के किसी खास संप्रदाय को वे अपने पर हावी नहीं होने देते।"
शंखों चौधरी के मूर्तिशिल्प
- लोटस
- संथाल
- टॉयलेट
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