kalkatta grup

कोलकाता ग्रुप और आधुनिक कला

1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात भारत की परंपरागत चित्र शैलियां मुगल राजस्थानी पहाड़ी पतन की तरफ उन्मुख हो चुकी थी इनके स्थान पर पाश्चात्य शैली में रंगे चित्र स्वीकार किए जा रहे थे कंपनी शैली कुछ इसी प्रकार का उदाहरण है प्रचार और प्रसार के संसाधनों ने भारतीय कलाकारों के ऊपर यूरोपीय वादों का प्रभाव भी डाला जिस से प्रभावित होकर भारतीय कलाकारों ने कला की एक अलग धारा बही जो आधुनिक कला के निर्माण में अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई

बंगाली स्कूल के स्थापित नियमों के विरुद्ध कुछ कलाकारों ने मुखर रूप में एकत्र होकर आवाज उठाई जिनमें निजी विचारों को साक्षात रूप से निरूपित करने पर जोर दिया गया इन्होंने कला में व्याप्त रूढ़ियों और दुराग्रह का पुरजोर तरीके से विरोध किया बंगाल में पड़े अकाल की इनके चित्रों में विशेष प्रति ध्वनि दिखाई पड़ती है
भारतीय कला जगत में आधुनिक कला को स्थापित करने के उद्देश्य से कोलकाता के कलाकारों ने मिलकर कोलकाता ग्रुप की स्थापना की जिसे ग्रुप 43 भी कहा जाता है इसकी स्थापना 1943 में कोलकाता पश्चिम बंगाल में की गई ग्रुप का उद्देश्य सृजन की दिशा में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करना तथा नवीन विचारधारा के कलाकारों का स्थापित करना जो पुरानी विचारधारा के दबाव के नीचे खुद की सृजनशीलता को खत्म कर रहे थे ऐसे ही समान विचारधारा के 8 कलाकारों ने मिलकर 1943 में कोलकाता ग्रुप की स्थापना की जिसने माध्यम विषय और अभिव्यक्ति के नए आयाम तलाशे संस्थापक सदस्यों में प्रदोष दासगुप्ता गोपाल घोष निरोद मजूमदार हेमंत मिश्र परितोष सेन रथीन मित्रा प्राण कृष्णपाल सुनील माधव सेन आदि

ग्रुप की प्रथम प्रदर्शनी 1944 ईस्वी में श्रीमती केसी के प्रयत्न शुरू हुई जिसकी काफी आलोचना हुई परंतु कला समीक्षकों ने इनकी पीठ भी थपथपाई 1948 ईस्वी से इस ग्रुप के कलाकारों को स्वीकृति मिलनी प्रारंभ हुई 1950 ईस्वी में पैग ग्रुप के कलाकारों के साथ मुंबई और कोलकाता में एक संयुक्त प्रदर्शनी आयोजित की गई तभी से यह ग्रुप विशेष चर्चा में आया कुछ समय पश्चात प्रदोष दासगुप्ता नेशनल आर्ट गैलरी में क्यूरेटर का कार्य करने लगे रथीन मित्रा दून स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए और प्राण कृष्णपाल नई दिल्ली के वायु सेना स्कूल में कला शिक्षक बन गये यहीं से यह ग्रुप धीरे-धीरे विकसित होने लगा

कोलकाता ग्रुप के प्रमुख कलाकार

प्रदोष दासगुप्ता 
गोपाल घोष
निरोद मजूमदार 
हेमंत मिश्र 
परितोष सेन 
रथीन मित्रा 
प्राण कृष्णपाल 
सुनील माधव सेन 

ग्रुप के कलाकारों का संक्षिप्त परिचय

प्रदोष दासगुप्ता

प्रदोष दासगुप्ता का जन्म 1912 ईस्वी में कोलकाता में हुआ इनकी शिक्षा हिरण राय चौधरी और देवी प्रसाद राय चौधरी के सानिध्य में हुई यह मूर्तिकार के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे हैं उनकी शैली पर हेनरी मूर का स्पष्ट रूप से प्रभाव देखा जा सकता है इन्होंने अपना अधिकांश मूर्तिशिल्प अमूर्त रूप में गढ़ा है तथा प्रिय माध्यम कांसा रहा

प्रदोष दासगुप्ता के मूर्ति शिल्प

कंडोलेंस 
जय हिंद
 पालना 
मा वा पुत्र 
पृथ्वी माता

नीरद मजूमदार 

निरोद मजूमदार का जन्म 1916 ईस्वी में हुआ इन्होंने इंडियन सोसायटी आफ ओरिएंटल आर्ट से कला की शिक्षा प्राप्त की यहां अनिल नाथ के रहे हैं इन्हे तांत्रिक कलाकार के रूप में भी जाना जाता है

निरोध मजूमदार के चित्र 

कुछ चुनी हुई प्रतिमाएं
 अनंत के पंख आदि 

रथीन मित्रा

रथीन मित्रा का जन्म 26 जुलाई 1926 को हावड़ा पश्चिम बंगाल में हुआ था कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट से उन्होंने कला की शिक्षा ली और दून स्कूल ऑफ आर्ट में कला अध्यापक भी रहे उत्तर प्रदेश कला अकादमी के सदस्य भी चुने गए यह कोलकाता ग्रुप के सकरी कलाकार थे इन्होंने अपने रूपों में कलात्मक एवं नैतिकता का समावेश किया है सशक्त रेखांकन की प्रमुख विशेषता रही है

 रथीन मित्रा के चित्र

हेमन्त मिश्र

हेमंत मिश्रा का जन्म 1917 में असम में हुआ था इन्होंने  धन्यवाद एवं यथार्थवाद पद्धति में चित्रों का निर्माण किया है कोलकाता ग्रुप से 1943 में जुड़े और लगातार अपने चित्रों को प्रदर्शित करते रहे

  हेमंत मिश्रा के प्रमुख चित्र 

प्रीमिटीव  एयर,
वर्स ऑन फायर
 ईको ऑफ ए  सांग
परस्यूंईग द फेडिंग गॉड
गोपाल घोष

कोलकाता में 1913 ईस्वी को गोपाल घोष का जन्म हुआ भारतीय आधुनिक कला में रोमांटिक चित्रों को स्थापित करने का श्रेय गोपाल घोष को ही दिया जाता है स्कूल ऑफ आर्ट से कला शिक्षा प्राप्त की और ठाकुर ने भी विशेष तौर पर है प्रोत्साहित किया कोलकाता लौटकर गवर्नमेंट स्कूल आफ आर्ट कोलकाता में अध्यापक नियुक्त किए गए तथा इंडियन सोसायटी आफ ओरिएंटल आर्ट इन्हें आधुनिक भारतीय सितरों के रूप में भी जाना जाता है

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