nirod mazumdar


कलाकार निरोद मजुमदार की कला यात्रा 


कलाकार समाज का अभिन्न अंग होता है जो समय के साथ घट रहे घटनाक्रमों को अपनी संवेदना हो की कसौटी पर कस कर चित्रों का रूप देता है भारतीय कला जगत में कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जिन्होंने अपने चित्रों के प्रतिमान अपनी संस्कृति और परिवेश से ग्रहण किए हैं और कला की एक नवीन भाषा का विस्तार किया है जो समाज के लिए ग्राही तो होती है पर उसे स्वीकार करना हिम्मत की बात होती है ऐसे ही सृजन के धनी कलाकार निरोद मजूमदार रहे हैं इन्होंने एक जगह कहा था मुझे चिंता लोगों के अन्याय से नहीं होती पर उनके ओछेपन से जरूर होती है जिससे भारतीय आधुनिक कला कहा जाता है उसमें से अधिकांश बिल्कुल घिसा पिटा है

प्रसिद्ध नवतंत्रवादी कलाकार निरोध मजूमदार का जन्म 1916 में कोलकाता में हुआ था बचपन से ही इन्हें कला में विशेष रूचि थी जो आजीवन बनी रही लगातार सृजन करते हुए 26 सितंबर 1982 को इनका देहांत हो गया

निरोद मजूमदार अच्छे से जानते थे गूढ़ चीजों को सहजता से व्यक्त नहीं किया जा सकता रॉबर्ट फ्रास्ट ने कहा था  कविता में जिस चीज का अनुवाद नहीं किया जा सकता वही कविता का आधार है निरोद ने कला के इसी मूल गुण पर जोर दिया था वह स्थापित अनुकृति के विरुद्ध थे फिर भी वह इस पर बल दिया था कि प्रासंगिक होने के लिए कला को अपना कलात्मक पदार्थ अपने सांस्कृतिक वातावरण से लेना चाहिए मजूमदार करते थे 

निरोद मजूमदार का मानना था कला का उद्देश्य केवल यथार्थ को प्रस्तुत करना नहीं है बल्कि दार्शनिक अभिव्यक्त भी करनी है कला के माध्यम से गूढ़ तत्वों को सरलता से समझा जा सकता है उनकी कृतियां बाहरी रूप, व्यवस्था, सरलता और संवेदनशीलता की चार आधारों पर आधारित हैं इनका मानना था जीवन दर्शन को समझने के लिए प्रतीकों का सहारा लेना आवश्यक है बिना इनके हम इस गूढ़ रहस्य को समझ पाना मुश्किल है निरोद मजूमदार ने समझ लिया था कला चाहे दृश्य हो संगीत या शाब्दिक प्रतीकों की भाषा ही महत्वपूर्ण है इसीलिए उन्होंने प्रतीकों को अपने चित्रों में बढ़-चढ़कर दिखाना प्रारंभ किया निरोद मजूमदार के विषय में परितोष सेन ने कहा था हां मैं निरोद मजूमदार की कृतियों का उल्लेख करना चाहूंगा उन्होंने हिंदू त्रिरूप की अवधारणा का जो प्रयोग न केवल चित्रों के रूप में बल्कि प्रतीक विधान की एक श्रंखला के लिए आधार के तौर पर किया है वह महत्वपूर्ण है केंद्रीय बिंदु समूह समूची संरचना को उत्पन्न करता है उसे एक सूत्र में भी बंधता है जैसे माला मोतियों को जोड़े रखती है

निरोध मजूमदार की प्रतिभा को सर्वप्रथम चटर्जी ने पहचाना और इनके माता-पिता को सलाह दी कि इनका दाखिला इंडियन सोसायटी आफ ओरिएंटल आर्ट में अवनीन्द्र नाथ ठाकुर के देखरेख में चलाए जा रहे विद्यालय में करा दें जहां पर इन्होंने यहां पर टैगोर बंधुओं,अवनीन्द्र नाथ ठाकुर और गगानेंद्र नाथ के साथ निरोद को क्षितिन्द्रनाथ और कालीपोदो घोष जैसे गुरु मिले ओ सी गांगुली और स्टेला क्रेमरिश से इन्होंने दर्शनशास्त्र का गूढ़ ज्ञान प्राप्त किया है जो इन के चित्रों में लगातार उभरता रहा 

निरोद  मजूमदार ने कोलकाता ग्रुप की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इन कलाकारों ने कलात्मक भाषा को बदलने की जरूरत महसूस की पश्चिम बंगाल में पड़े अकाल ने इनके संवेदनाओं को काफी प्रभावित किया लोगों के दुख दर्द के प्रति सहानुभूति का भाव और साथ ही इनमें उनकी तमाम जटिलताओं के साथ आधुनिकता की गहरी समझ भी दिखाई देती है कुछ कलाकारों का वामपंथी विचारधारा के तरफ झुकाव भी देखा गया 1951 में भारतीय उच्चायोग में आयोजित भारत की एक बड़ी प्रदर्शनी में भाग लिया प्रदर्शनी की समीक्षा करते हुए जान बर्गर करने जान बार करने निरोध मजूमदार के चित्रों पर फ्रांसीसी प्रभाव का उल्लेख किया इससे निरोद मजूमदार को इतनी चोट लगी कि उन्होंने उस काल की अपनी तमाम चित्रों को आग के हवाले कर दिया अपने चित्रों में प्रतीकों का ऐसा प्रयोग अन्यत्र नहीं दिखाई देता है मित्र की संरचनाओं को नया रूप देने के लिए आरंभिक बिंब विधान प्रतीक के नए स्वरूपों को गढ़ा रचना को लेकर एक ही समय में अलग-अलग विचार इन के चित्रों में देख सकते हैं

मजूमदार ने अपनी कला को अपना सब कुछ दे दिया पर समाज के ओछेपन के कारण अपने जीवन का अंतिम समय एकांत में वितरित किया और अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करना भी लगभग में बंद कर दिया युवा पीढ़ी के कलाकारों में प्रोकाश करमाकर और विजय चौधरी की कलाकृतियां इन्हें अच्छी लगती हैं इमेज क्लोजेज 1953 से 1955 के मध्य एक श्रंखला तैयार की जो 1957 में पेरिस और कोलकाता में प्रदर्शित की गई उनके तांत्रिक कला की पहली प्रदर्शनी था

निरोद  मजूमदार की कृतिया किसी एक मिथक पर आधारित होती हैं जो किसी एक पक्ष को दर्शाती हैं इसीलिए वह स्वयं में महत्वपूर्ण हो सकती हैं कृतियों को मंदिर की तरह यह सम्मान देते थे इमेज क्लोजजेज में विपुल और लशमंदिर की कहानी आरंभिक बिंदु का काम करती है इसमें एक औरत विपदा का सामना करने के लिए पहल करती है और दैवी शक्तियों का सामना करने को दूसरी दुनिया और स्वर्ग की यात्रा करती है इस श्रृंखला की रचना यूरोप में तबाही के बाद पुनर्निर्माण शुरू होने के ठीक पहले की गई थी उनके उद्देश्य की पूर्ति के लिए मृत्यु जनन क्षमता और धान की बाली के पुनर्जन्म जीवन के मिथक का उपयोग किया गया अनंत के पंख संख्या में गरुड़ पक्षी की माता विनीता की आकलन में अखंडित भारत के परिणामों के बीच कथा की प्रतीकात्मक समानता देखी जा सकती है वैतरणी श्रंखला में नदी अंत में आती है जिसे कोई मृत्यु के साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए पार करता है

मजूमदार ने अंतिम कैनवास में वैतरणी को चित्रित किया इसमें एक तैराक के पीछे मगरमच्छ दिखाई पड़ता है तैराक नदी पार करने की कोशिश कर रहा है दुर्गा और काली के चित्र अस्तित्व की यंत्रणा के दिव्य आयाम जोड़ते हैं जिसमें वह दुनिया के बारे में अपनी प्रतिक्रिया और टिप्पणी देते हैं निरोध मजूमदार को नवीन कला भाषा के कलाकार की तरह याद किया जाएगा जिसने अपना समूचा जीवन भारतीय कला के गहरे अवलोकन और उसको उन्नत बनाने में लगा दिया


निरोद मजुमदार के चित्र 

अनंत के पंख, वैतरणी, इमेज क्लोजेज

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